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लोकतंत्र के उत्सव में खलल डालने के लिए आतंकियों के नापाक मंसूबे बयां करने के लिए काफी है कि उनकी बौखलाहट किस कदर उबाल मार रही है। कश्मीर में एक के बाद एक चार आतंकी हमले जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनावों में खलल डालने की नापाक कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं है। पहले दो चरण में 25 नवंबर और दो दिसंबर को जम्मू कश्मीर में बंपर मतदान के बाद आतंक के आकाओं की बौखलाहट किसी रूप में तो सामने आनी ही थी। ऐसे में आतंकी हमलों के जरिए कश्मीर के वाशिंदों में खौफ पैदा करने के लिए एक के बाद हमले कर आतंकियों ने अपने मंसूबे जाहिर कर दिए हैं कि वे कश्मीर में किसी भी हाल में शांतिपूर्व चुनाव नहीं चाहते हैं। जांबाज सुरक्षाकर्मियों ने भले ही 6 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया हो, लेकिन इस हमले में 11 सुरक्षाकर्मी भी शहीद हो गए। दिल्ली में बैठकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर तक भले ही आतंकियों को करारा जवाब देने की बात कर रहे हों, लेकिन सवाल ये उठता है कि 12 घंटे में चार आतंकी हमलों के बाद क्या अब भी सिर्फ बातों से ही काम चलेगा ? वो कहते भी हैं कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं, ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि इनसे कैसे निबटा जाए ?
जाहिर है जब तक आतंकियों के पनाह देने वालों को ये एहसास नहीं होगा कि उनको इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, तब तक आतंक के आका सुरक्षित ठिकानों में बैठकर आत्मघाती हमलावरों के जरिए भारत की शांति को भंग करने की नाकाम कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ! इसलिए अब जरूरी है कि देश के दुश्मनों को करारा जवाब दिया जाए।
अब जरूरत है कि आतंकियों तो खत्म करने की कहानियां सुनाकर सत्ता का रास्ता आसान करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब सत्ता में है, तो इन कहानियों को हकीकत में बदले। हमारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री अब सिर्फ बातें न करें बल्कि आतंक के आकाओं में मौत का वो खौफ पैदा करें कि वे भारत की तरफ आंख उठाने से पहले हजार बार सोचे ! आतंक के पनाहगारों को ये एहसास हो कि भारत के इरादे फौलादी हैं और भारत की तोपों में भी इतना बारूद है कि वो उनका नामो निशान मिटा सकते हैं !
अमेरिका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन की कहानी का अंत कर एक उदाहरण दुनिया के सामने पेश किया था कि वो अपनी धरती को खून से लाल करने वालों को किसी सूरत में नहीं बख्शेगा ! लेकिन सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार ये साहस जुटा पाएगी ?
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