Menu
blogid : 11729 postid : 812287

जनता परिवार- डर के आगे ही जीत है !

प्रयास
प्रयास
  • 427 Posts
  • 594 Comments

डर के आगे ही जीत है, आम चुनाव के बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कमल खिलने के बाद मुलायम सिंह, लालू, नीतिश और देवीगौड़ा समेत तमाम उन नेताओं ने ये मान ही लिया लगता है। मुलायम के दिल्ली दरबार में हुई बैठक में हाथों में हाथ डालकर जिस तरह ये नेता बैठे थे, उससे तो यही लगता है कि ये मान चुके हैं कि अकेले दम पर ये केन्द्र के बाद एक एक कर राज्यों में खिलते कमल को रोक नहीं सकते !
सत्ता की महत्वकांक्षा मुलायम से लेकर लालू, नीतिश, देवीगौड़ा समेत तमाम इन नेताओं में थी, शायद इसलिए ही इनकी राहें समय के साथ या यूं कहें कि मौका मिलने के साथ साथ अलग होती गईं। सत्ता का सुख लगभग सबने अपने अपने हिस्से का भोगा भी, लेकिन मोदी की आंधी में इनके राजनीतिक भविष्य का दिया अब टिमटिमाने लगा है, इसका एहसास भी इनको जल्दी ही हो गया इसलिए ही अब आगे के लड़ाई अकेले अकेले लड़ने की ताकत शायद इनमें नहीं बची है !
करीब साल भर बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो ढ़ाई साल बाद यूपी का नंबर है, जाहिर है राजनीति की तेजी से बदलती तस्वीर ने इन राजनीतिक सूरमाओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कैसे अपनी राजनीतिक जमीन को खिसकने से बचाया जा सके। मोदी के खिलाफ साथ मिलकर लड़ने के अलावा शायद इनके पास कोई दूसरा रास्ता बचा भी नहीं था। साथ आने के ऐलान भी इन्होंने कर ही दिया है, लेकिन इनका ये समाजवादी जनता परिवार का फार्मूला जनता को कितना भाएगा ये तो चुनावी नतीजे ही तय करेंगे!
सबसे अहम सवाल तो ये है कि क्या साथ मिलकर भाजपा को रोकने का सपना देखने वाले इन राजनीतिक सूरमाओं की व्यक्तिगत महत्वकांक्षाएं एक बार फिर से इनके आड़े नहीं आएंगी ?
क्या किसी एक को ये अपना सर्वोच्च नेता मान पाएंगे और मान पाएंगे तो क्या वर्तमान में कैमरे के सामने दिखाई दे रही इनकी एकजुटता लंबे समय तक या सत्ता के करीब पहुंचने पर कायम रह पाएगी ?
जाहिर है, जिन नेताओं की राहें सत्ता की महत्वकांक्षा के लिए अलग हुई हों, उनका फिर से अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए साथ आना तो समझ में आता है, लेकिन फिर से इनकी राहें जुदा नहीं होंगी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता !
बहरहाल इन नेताओं की जुगलबंदी भविष्य में क्या गुल खिलाएगी, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कल तक एक दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले नेताओं का साथ आना ये बताने के लिए काफी है कि मोदी की आंधी के आगे इनका डर अब धीरे धीरे बढ़ने लगा है, साथ ही इन नेताओं का ये विश्वास भी कि डर के आगे ही जीत है और इस जीत के लिए जरूरी है राजनीतिक मोर्चाबंदी की जिसकी कवायद इन्होंने शुरु कर दी है !

deepaktiwari555@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply