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भाजपा सरकार और नैचुरली करप्ट पार्टी !

प्रयास
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के साथ साझा रूप से सरकार चला रही एनसीपी को “नैचुरली करप्ट पार्टी” का तमगा देकर जमकर निशाना साधा और लोगों से वोट की अपील की थी। प्रधानमंत्री मोदी ने तो अपने चुनावी भाषण में एनसीपी के चुनाव चिन्ह को लेकर भी जमकर तंज भी कसे थे कि कैसे एनसीपी की घड़ी की सुई पहले दिन से सिर्फ 10 बजकर 10 मिनट पर ही अटकी हुई है। 19 अक्टूबर को जब चनाव के नतीजे आए तो महाराष्ट्र में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने वाली भाजपा के पास खुश होने की वाजिब वजह थी लेकिन एक मुश्किल ये थी कि भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े से कुछ कदम दूर ही रह गई।

शिव सेना के साथ आने के लिए विकल्प खुले थे, लेकिन भाजपा और शिवसेना दोनों की तरफ से शर्तों का पहाड़ सामने खड़ा था। बयानों के लंबे दौर के बीच विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने की तारीख आ गई, लेकिन भाजपा और शिव सेना में बात नहीं बन पाई। आखिरकार विश्वास मत से कुछ घंटे पहले शिव सेना ने लंबी जद्दोजहद के बाद ऐलान कर दिया कि वह विपक्ष में बैठेगी।

भाजपा के लिए ये चिंता की बात इसलिए भी नहीं थी, क्योंकि एनसीपी चुनावी नतीजे के दिन ही भाजपा को बाहर से समर्थन देने का ऐलान कर चुकी थी। शायद यही वजह थी कि भाजपा ने शिवसेना की नाराजगी को सिर्फ नाराजगी के तौर पर ही लिया।

भाजपा ने भले ही जैसे तैसे विश्वास मत हासिल कर तो लिया लेकिन राह भाजपी की अब भी आसान नहीं है। एनसीपी भले ही सरकार में शामिल न हो रही हो, लेकिन एनसीपी के समर्थन से भाजपा के विश्वास मत हासिल करने से सवाल भाजपा पर भी खड़े होने लगे हैं !

सवाल उठने लाजिमी भी हैं, जाहिर है जिस पार्टी के कुशासन और भ्रष्टाचार की कहानियां सुनाकर, सुशसान के सपने दिखाकर, भाजपा ने जनता से वोट मांगे, उस पार्टी के सहयोग से सरकार बनाना कितना सही है !

सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ सत्ता सुख भोगने के लिए अपनी पुरानी सहयोगी के साथ न होने के बावजूद भाजपा एनसीपी का सहारा ले रही है, जो हमेशा से उसके निशाने पर रही है ?

एनसीपी के सहारे से विश्वास मत हासिल करके सिर्फ सवाल ही नहीं उठे हैं, बल्कि सरकार के भविष्य पर भी हमेशा संकट के बाद मंडराते रहेंगे। जो एनसीपी बिना किसी शर्त अपनी कट्टर राजनीतिक दुश्मन पार्टी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे सकती है, क्या गारंटी है कि वह सरकार से किसी भी वक्त समर्थन वापस नहीं लेगी ?

क्या गारंटी है कि इसके बदले में वह भाजपा सरकार को पर्दे के पीछे ब्लैकमेल नहीं करेगी ?

सवालों की फेरहिस्त काफी लंबी है, लेकिन जवाब शायद भाजपा के पास नहीं है। जो जवाब है, कि हमने किसी से समर्थन नहीं मांगा है, वो गले नहीं उतर रहा !

बहरहाल जवाब तो भाजपा को आज नहीं तो कल देना ही पड़ेगा, लेकिन फिलहाल तो शिवसेना और कांग्रेस दोनों मिलकर फडनवीस सरकार के विश्वास मत पर ही अविश्वास जताकर उसे घेरने की तैयारी में जुट गए हैं, ऐसे में देखना ये होगा कि सदन के भीतर अपनी पुरानी सहयोगी के हमले से भाजपा किस तरह अपना बचाव करती है, और भाजपा के लिए फिलहाल संजीवनी साबित हो रही एनसीपी से कब तक फडनवीस सरकार को ऑक्सीजन मिलती है।

deepaktiwari555@gmail.com

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