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“Justice Delayed is Justice Denied”

प्रयास
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हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दंभ भरते हैं, लेकिन एक सच ये भी है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इंसाफ की लड़ाई इससे भी बड़ी औऱ मुश्किल है ! गुजरते वक्त के साथ तस्वीरें यकीनन धुंधली पड़ चुकी थी, लेकिन 39 वर्ष बाद देश के तत्कालीन रेलमंत्री एल एन मिश्रा हत्याकांड पर फैसला आने की ख़बर के साथ धुंधली पड़ चुकी यादों को ताजा करने की कवायद शुरु होती है। साथ ही एक बार फिर से ये सवाल जेहन में उठता है, कि आखिर क्यों इंसाफ की लड़ाई दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में इंसाफ की लड़ाई इतनी लंबी हो जाती है, कि अक्सर लोग इंसाफ की इस लड़ाई से लड़ते लड़ते ही हार मान लेते हैं, लेकिन उन्हें इंसाफ नहीं मिलता ! इंसाफ मिलता भी है तो इतनी देर से कि कई बार उसका कोई मतलब ही नहीं रह जाता !  अंग्रेजी की ये कहावत “Justice Delayed is Justice Denied” यहां पर एकदम सटीक बैठती है।

दो जनवरी 1975 को देश के तत्कालीन रेलमंत्री एन एन मिश्रा की बिहार के समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर (बिहार) ब्राड गेज रेल लाईन के उदघाटन के मौके पर समस्तीपुर में बम धमाके में हुई मौत के बाद भी नवंबर 2014 तक इश हत्याकांड नें फैसला न आना इसकी ताजा मिसाल है। 39 वर्ष बाद जैसे तैसे फैसले की तारीख करीब आती भी है, तो अदालत ये कहते हुए फैसले की तारीख आगे बढ़ाकर 8 दिसंबर कर देती है कि फैसला अभी तैयार नहीं है !

इंतजार 8 दिसंबर का है कि आखिर इस हाई प्रोफाईल हत्याकांड में 39 वर्ष बाद ही सही अदालत क्या फैसला सुनाती है ?  39 वर्ष के लंबे इंतजार को देखते हुए तो अब 8 दिसंबर को लेकर भी संशय है कि फैसला 8 दिसंबर को आ ही जाएगा !

कहते हैं देर आए दुरुस्त आए लेकिन इंसाफ अगर इतनी देर से आए, तो इसे दुरुस्त कैसे कहा जा सकता है ? इसको समझने के लिए इस हत्याकांड के मुख्य आरोपी के जीवनकाल को समझना होगा ! रंजन जो जो अन्य लोगों के साथ इस हत्याकांड का आरोपी है, उसकी उम्र इस हत्याकाडं के वक्त जनवरी 1975 को महज 24 वर्ष थी। घटना को 39 वर्ष बीत चुके हैं और रंजन की उम्र अभी करीब 63 वर्ष है। इस हत्याकांड के एक आरोपी की इस दौरान मौत भी हो चुकी है। इसी तरह दूसरे आरोपियों भी उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं। ठीक इसी तरह इंसाफ की आस लगाए बैठे तत्कालीन रेल मंत्री एल एन मिश्रा के परिजन भी लगभग इसी स्थिति में होंगे! हो सकता है कि 39 वर्ष बाद अब 8 दिसंबर को अदालत आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुना भी दे। लेकिन सवाल है कि क्या वाकई में इंसाफ की आस लगाए बैठे लोगों को इंसाफ मिल पाया ! बात सिर्फ तत्कालीन रेल मंत्री एल एन मिश्रा हत्याकांड की ही नहीं है, शिक्षक भर्ती घोटाले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला को भी उस मामले में 13 वर्ष बाद सजा हुई। ऐसे कई मामले हैं, जो देश की विभिन्न अदालतों में सालों से लंबित हैं !

देश की सर्वोच्च अदालत की ही अगर बात करें तो एक आंकड़े के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या 60 हजार के करीब है, तो देशभर के विभिन्न उच्च न्यायालयों में वर्ष 2011 तक लंबित मामलों की संख्या करीब 43 लाख 22 हजार थी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि देशभर की निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कितनी होगी?

हालांकि इसके पीछे की बड़ी वजह विभिन्न अदालतों में बड़ी संख्या में जजों के रिक्त पदों का होना भी है, लेकिन वजह चाहे जो भी इंसाफ देर से मिला तो यही कहा जाएगा- “Justice Delayed is Justice Denied”.

deepaktiwari555@gmail.com

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