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काला धन और चंदे का खेल !

प्रयास
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काले धन के मुद्दे पर पहले सुर्खियां और फिर वोट तो मोदी जी ने खूब बटोरे लेकिन जब बारी विदेशी बैंक में जमा भारतीयों के काले धन को वापस लाने की बात आई  तो काला धन वापस लाना तो छोड़िए, काला धन जमा करने वालों के नाम का खुलासा करने में भी खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत चरितार्थ होती दिखाई दी।

सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय में हलफनामा दाखिल कर नाम भी बताए तो सिर्फ तीन कारोबारियों के। डाबर समूह के प्रदीप बर्मन, गोवा की खनन कारोबारी राधा टिम्बलू और राजकोट के सर्राफ व्यापारी पंकज चमनलाल लोढ़िया के नाम सबूत के साथ सरकार ने दिए हैं। हालांकि इनमें से प्रदीप बर्मन ने अपने खाते को वैध बताते हुए सभी प्रकार के टैक्स चुकाए जाने का दावा किया है तो पंकज लोढ़िया ने तो स्विस बैंक में खाता होने की बात से ही साफ इंकार किया है। अब इनके दावों पर यकीन किया जाए तो लंबी जद्दोजहद के बाद सरकार ने जो तीन नाम सार्वजनिक किए हैं, वो मोदी सरकार के जमकर किरकिरी भी करा सकते हैं।

वैसे असल मुद्दा सार्वजनिक किए गए नामों की संख्या को लेकर है, जो सरकार के पूर्व में किए गए वादे के अनुसार कम से कम 136 तो होनी ही चाहिए थी, लेकिन सामने आए सिर्फ तीन नाम। अब इसके मोदी सरकार की क्या मंशा है, ये तो वे ही बेहतर समझ सकते हैं, लेकिन नाम न बताने से पहले भी सवालों के घेरे में आई मोदी सरकार की मुश्किलें नाम बताने के बाद अब और भी ज्यादा बढ़ गई हैं।

पहले नाम न बताने को लेकर सरकार विपक्षियों के निशाने पर थी, अब नाम बता दिए तो सिर्फ तीन ही नाम क्यों का सवाल मोदी सरकार से जवाब मांग रहा है। जाहिर है खाताधारकों की फेरहिस्त लंबी है, लेकिन सिर्फ तीन कारोबारियों के नाम ही क्यों का जवाब हर कोई जानना चाहता है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्मस की रिपोर्ट ने इन तीन नामों का भाजपा और कांग्रेस दोनों से जुड़ा एक और खुलासा कर भाजपा और कांग्रेस दोनों की नींद और उड़ा दी है। एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि कालाधन रखने वाली गोवा के कारोबारी राधा टिंबलू की कंपनी टिंबलू प्राईवेट लिमिटेड ने वित्तीय वर्ष 2004 -2005 और 2011-2012 में भाजपा और कांग्रेस को एक करोड़ 83 लाख रूपए का चंदा भी दिया था। इसमें से बड़ी राशि भाजपा के खाते में आई जिसने टिंबलू प्राईवेट लिमिटेड से एक करोड़ 18 लाख रूपए का चंदा लिया तो कांग्रेस ने 65 लाख रूपए का चंदा लिया। वहीं राजकोट के सर्राफ पंकज लोढ़िया ने भी भाजपा को 2011-12 में 51 हजार रूपए का चंदा दिया था।

जाहिर है कालेधन के मुद्दे को जोरशोर से उठाने वाली भाजपा और तीन नाम सार्वजनिक करने वाली मोदी सरकार की मुश्किल इस खुलासे के बाद अब और बढ़ गई है। टैक्स चोरी कर विदेशी बैंकों में कालाधन रखने वालों से चंदा लेने पर सवाल उठने लाजिमी है, मजे की बात तो ये है कि कालेधन के मुद्दे पर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस पर सवाल उठाने वाली भाजपा और अब विपक्ष में रहते हुए भाजपा पर सवाल उठा रही कांग्रेस दोनों ही अब एक जैसी स्थिति में है।

चंदे की रकम का बड़ा हिस्सा भले ही भाजपा के खाते में आया हो लेकिन कम ही सही चंदा कांग्रेस ने भी बटोरा है। ऐसे में कालेधन के मुद्दे के बाद एक दूसरे पर निशाना साधकर सियासी फायदा बटोरने वाली देश की दोनों बड़ी पार्टियां अब खुद सवालों के घेरे में हैं।

जाहिर है चंदा देने वालों के दोनों ही पार्टियों से अपने अपने व्यवसायिक स्वार्थ रहे होंगे, और इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि चंदे की एवज में सत्ताधारी दल से इन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया होगा या उठाने की तैयारी में होंगी ! अब चाहे सफाई कोई कितनी ही दे, लेकिन काला धन रखने वालों से चंदा लेने के बाद दोनों ही पार्टियों पर भरोसा करना मुश्किल है। खासकर सत्ताधारी भाजपा पर जो कालेधन को वापस लाने और सभी अवैध खाताधारकों के नामों को उजागर करने का दावा कर रही है। वैसे भी नाम उन्हीं के उजागर हुए हैं, जिनसे लिया गया चंदा इन पार्टियों को मिलने वाली चंदे की रकम का बहुत छोटा सा हिस्सा है। ऐसे ही ये राजनीतिक दल चुनावों में पानी की तरह पैसा नहीं बहाते !

deepaktiwari555@gmail.com

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