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भाजपा – खुमारी अभी बाकी है !

प्रयास
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सफलता पाना तो हर कोई चाहता है, लेकिन सफलता हजम हर किसी को नहीं होती। 16 मई को आम चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा का भी कुछ ऐसा ही हाल है। उम्मीद से ज्यादा मिलने की खुशी शायद भाजपा भी नहीं पचा पा रही है। उम्मीदें आसमान छू रही हैं, उस पर जीत की खुमारी ऐसी चढ़ी है कि उतरने का नाम ही नहीं ले रही हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र का चुनाव सामने है और अलग अलग राज्यों की 33 विधानसभा उपचुनाव में जनता का मिजाज नजर आ चुका है। लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मानें तो हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत, उपचुनाव के नतीजों का दर्द भुला देगी। लेकिन सवाल फिर वहीं खड़ा है कि कहीं ये अति आत्मविश्वास तो नहीं, क्योंकि उपचुनाव से पहले भी तो एकतरफा जीत के दावे किए जा रहे थे, जिसे जनता ने आईना दिखा दिया।

हरियाणा में चंद सीटों पर सिमट जाया करने वाली भाजपा को इस बार लगने लगा है कि वो अपने दम पर विजय पताका फहराएगी और हरियाणा में उसकी सरकार बनेगी। इसके लिए उसने अपनी सहयोगी हरियाणा जनहित कांग्रेस से तक किनारा कर लिया क्योंकि हजकां गठबंधन की पुरानी शर्तों के अनुसार चलने की बात कह रही थी, जबकि जीत की खुमारी में डूबी भाजपा अपने हिसाब से हजकां को कंट्रोल करना चाहती थी। नतीजा गठबंधन का बंधन टूट गया।

दूसरे चुनावी राज्य महाराष्ट्र में भी भाजपा इसी राह पर चलती दिखाई दे रही है। हो सकता है भाजपा और शिवसेना में सीटों के बंटवारे पर आपसी सहमति बन भी जाए लेकिन फिलहाल की स्थितियां और चुनाव की तारीख के ऐलान के बाद तक सीटों के बंटवारे को लेकर तकरार साफ कर रही है कि महाराष्ट्र में भी भाजपा को अपने दम पर जीत का भरोसा है और वह इसके लिए अपनी 25 साल पुरानी सहयोगी शिवसेना से भी किनारा करने से गुरेज नहीं करने वाली। दरअसल 2009 में 119 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा इस बार 135 सीटों पर चुनाव लड़ने पर अड़ी है, लेकिन 2009 में 169 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना को ये मंजूर नहीं है। सवाल ये है कि ये स्थितियां निर्मित क्यों हुई..?

जाहिर है, 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर पर सवार भाजपा की प्रचंड जीत इसका आधार बनी हैं, भाजपा का मानना है कि आम चुनाव में उसने महाराष्ट्र में 23 सीटें जीती जबकि शिवसेना 18 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई, ऐसे में उसका प्रदर्शन महाराष्ट्र में शिवसेना से बेहतर रहा। ऐसे में उसका दावा कहीं से भी गलत नहीं है। लेकिन असल सवाल ये भी है कि क्या मोदी का ये करिश्मा हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव  में भी काम करेगा या फिर हाल ही में हुए अलग अलग राज्यों की 33 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों का अक्स इसमें भी नजर आएगा..?

हरियाणा में भाजपा-हजकां गठबंधन का बिखरना और महाराष्ट्र में भी भाजपा-शिवसेना के रास्ते अलग होने का संकेत तो कम से कम इसी ओर ईशारा कर रहा है कि भाजपा अति आत्मविश्वास से लबरेज है और उपचुनाव के नतीजों से भी शायद भाजपा सबक लेने को तैयार नहीं है। शाह को अभी भी भरोसा है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस को परास्त कर भाजपा भारी बहुमत से सरकार बनाएगी और कांग्रेस मुक्त भारत के रास्ते पर आगे बढ़ेगी।

अति आत्मविश्वास से लबरेज ये वही भाजपा है, जो आम चुनाव से पहले एक भी लोकसभा सीट जीतने की संभावना रखने वाले छोटे से छोटे दल के साथ प्री पोल गठबंधन करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी, लेकिन आम चुनाव में जीत के बाद उसे अपने साथियों का साथ छोड़ने से भी परहेज नहीं है।

सपने देखना अच्छी बात है और उन्हें पूरा करने की कोशिश करना और भी अच्छी बात, लेकिन भाजपा को ये नहीं भूलना चाहिए कि बातें चाहे वो कितनी ही कर लें, आखिरी फैसला तो जनता को ही करना है। वैसे भी 19 अक्टूबर अब ज्यादा दूर नहीं है।

deepaktiwari555@gmail.com

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