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सोनिया गांधी- त्याग की मूर्ति !

प्रयास
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राजनीति में त्याग की कहानियां कम ही सुनने को मिलती हैं, 2004 में जब यूपीए सत्ता में आई तो ऐसी ही एक कहानी कही गई कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी का त्याग किया है। उस वक्त सोनिया गांधी ने ये कहते हुए प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था कि ये उनकी अंतरआत्मा की आवाज है। लेकिन कभी कांग्रेस परिवार के करीबी रहे नटवर सिंह की आने वाली आत्मकथा “वन लाइफ इज नॉट इनफ” में गांधी परिवार से जुड़ी कई बातों का खुलासा होने की उम्मीद है। उनमें से एक खुलासा ये भी है कि सोनिया गांधी ने 2004 में अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर पीएम बनने से इंकार नहीं किया था बल्कि इसके पीछे राहुल गांधी का डर था।

बकौल नटवर सिंह राहुल गांधी को डर था कि पीएम बनने पर सोनिया गांधी की उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की ही तरह हत्या हो सकती है। मतलब साफ है कि पीएम न बनने का सोनिया गांधी का फैसला सोनिया की अंतरआत्मा की नहीं बल्कि राहुल की अंतरआत्मा की आवाज़ थी, जो सोनिया को प्रधानमंत्री न बनने के लिए कह रही थी। नटवर सिंह ये भी बताते हैं कि सोनिया के पीएम बनने वाली बात को किताब से हटाने के लिए प्रियंका गांधी उनसे मिली थी और सोनिया और राहुल गांधी ने भी उनसे इसको लेकर बात की थी। कांग्रेसी इसे भले ही राजनीति से प्रेरित बता रहे हों, लेकिन सवाल तो उठते ही हैं।

2005 में कांग्रेस से निकाले जा चुके नटवर सिंह की बातों पर विश्वास किया जाए तो ये साफ होता है कि सोनिया जिसे कांग्रेसी उनके इस फैसले के लिए त्याग की मूर्ति कहते हैं, वो दरअसल पीएम बनना चाहती थी लेकिन अपने बेटे राहुल के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा और खुद सोनिया गांधी ने इस फैसले से संसद के सेंट्रल हॉल में सबको ये कहते हुए अवगत कराया था कि वे अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ पर पीएम बनने से पीछे पीछे हट रही हैं।

वैसे एक बात और समझ नहीं आती कि वाकई में सोनिया सत्ता नहीं चाहती थी, प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहती थी तो फिर उस वक्त एक ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री क्यों बनाया, जो यूपीए वन और यूपीए 2 के दस साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री होते हुए सिर्फ एक कठपुतली की तरह काम करता रहा जबकि सत्ता का दूसरा केन्द्र सोनिया गांधी ही थी..!

वाकई में अगर सोनिया को सत्ता की चाहत नहीं थी तो क्यों नहीं किसी दूसरे नेता को पीएम नहीं बनाया गया..? यहा जिक्र मनमोहन सिंह का हो रहा है, और इस बात का खुलासा कभी मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू भी अपनी किताब ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर: द मेकिंग ऐंड अनमेंकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’  में कर चुके हैं कि मनमोहन सिंह सिर्फ एक एक्टिंग प्राइम मिनिस्टर ही थे, जबकि सरकार सोनिया गांधी चला रहीं थी..!

सोनिया पीएम बनना चाहती थी लेकिन पुत्र राहुल गांधी की बात नहीं टाल पाई, ऐसे सरकार पर नियंत्रण के लिए सोनिया को पीएम की कुर्सी पर मनमोहन सिंह टाईप नेता ही चाहिए था, जो सोनिया के ईशारे पर काम करता रहे और मनमोहन सिंह ने भी सोनिया गांधी को निराश नहीं किया..!

राजनीति में सत्ता हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले राजनेता सत्ता का त्याग करें, ये गले नहीं उतरता, फिर सोनिया क्यों अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर पीएम की कुर्सी छोड़ती। इसको जयपर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में राहुल गांधी के उस बयान से भी समझ सकते हैं, जब कांग्रेस उपाध्यक्ष की कुर्सी संभालते वक्त राहुल ने दिया था। याद होगा आपको राहुल गांधी ने कहा था कि मां ने उनसे कहा था कि सत्ता जहर के समान है।

है न, हैरत की बात कि बेटा मां को पीएम इसलिए बनने से रोकता है क्योंकि उसे मां की हत्या का डर था, जबकि मां बेटे से कहती है कि सत्ता जहर है, लेकिन उस जहर को पीने के लिए आगे करती है..! अब मां – बेटे की इस थ्योरी को तो सिर्फ कांग्रेसी ही समझ सकते हैं..! वैसे समझने के लिए अभी काफी कुछ बाकी भी बचा है, नटवर सिंह कि आत्मकथा आनी अभी बाकी है। इंतजार कीजिए।

deepaktiwari555@gmail.com

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