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एक्जिट पोल ने उड़ाई कांग्रेस की नींद ! – जागरण जंक्शन फोरम

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले तमाम समाचार चैनलों और एजेंसियों के एक्जिट पोल जहां भाजपा को चुनाव नतीजों से पहले ही खुशी की एक बड़ी वजह दे रहे हैं, वहीं कांग्रेस की मुश्किलों में ईजाफा करते दिखाई दे रहे हैं। एक्जिट पोल पांच राज्यों में से चार प्रमुख राज्यों दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं तो भाजपा का खुश होना लाजिमी भी है, लेकिन कांग्रेस की हार का दावा कर रहे ये एक्जिट पोल कांग्रेस को रास नहीं आ रहे हैं, शायद इसलिए ही कांग्रेस ने चुनाव आयोग की उस राय से झट से अपनी सहमति जता दी, जिसमें चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से चुनाव पूर्व होने वाले एक्जिट पोल पर बैन लगाने पर राय मांगी थी। कांग्रेस भले ही इसके पीछे ये तर्क दे रही है कि ऐसे सर्वे जनता के फैसले को प्रभावित करते हैं, लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस की इस मांग के पीछे एक डरी हुई कांग्रेस नजर आ रही है।

2014 के आम चुनाव से पहले काफी अहम माने जा रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पूर्व एक्जिट पोल में चार प्रमुख राज्यों में से दो राज्यों दिल्ली और राजस्थान में सत्ता में काबिज और दो राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता पाने को बेकरार कांग्रेस की संभावित हार से कहीं न कहीं कांग्रेस क्या कांग्रेस की जगह कोई दूसरा राजनीतिक दल होता तो शायद फिलहाल चुनाव पूर्व एक्जिट पोल पर उसका यही नजरिया होता, जो अभी कांग्रेस का इन सर्वे को लेकर है।

ऐसे सर्वे जीत की आस लगाए बैठे किसी भी राजनीतिक दल का मनोबल तोड़ने के लिए काफी है और यही अभी कांग्रेस के साथ भी हो रहा है। लेकिन कांग्रेस के पास इसका जवाब नहीं होगा कि आज से पहले जिन सर्वे में कांग्रेस की संभावित विजय दिखाई जाती थी उस वक्त तो कांग्रेस को ये सर्वे खूब भाते थे और कांग्रेसी इस पर खूब इतराते थे।

कांग्रेस घबराई हुई है तो एक्जिट पोल में चार प्रमुख राज्यों में अपनी संभावित जीत देख रही भाजपाई खूब इतरा रहे हैं, इसलिए भाजपा को चुनाव पूर्व एक्जिट पोल से कई आपत्ति नहीं है और भाजपा की मानें तो कांग्रेस का इसको बैन करने के पक्ष में इसलिए है, क्योंकि वो अपनी संभावित हार से बौखला गई है। शायद इसलिए ही भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी ये तक बोल गए कि अगर कांग्रेस एक्जिट पोल सर्वे पर बैन लगाने की बात कह रही है तो क्यों ना चुनाव आयोग और न्यायालयों पर भी पाबंदी लगा दी जाए?

भाजपा का ये सवाल तो जायज है लेकिन भाजपा नेताओं को ये नहीं भूलना चाहिए कि अगर ये सर्वे के नतीजे उल्ट होते तो शायद भाजपा अभी कांग्रेस वाली स्थिति में होती और इन सर्वे को बेबुनियाद बताने का कोई मौका नहीं छोड़ती।

वैसे सवाल तो ये भी उठता है कि क्या चुनाव पूर्व एक्जिट पोल के नतीजे जनता को बरगला सकते हैं और बरगला सकते हैं तो किस हद तक..? कांग्रेस का तो यही मानना है कि ऐसा हो सकता है और ऐसे सर्वे जनता के फैसले को प्रभावित करते हैं लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर ये मानना है कि आज का मतदाता सर्वे में दिखाई जाने वाले संभावित जीत या हार को ध्यान में न रखते हुए स्थानीय मुद्दों और अपने क्षेत्र के प्रत्याशी को ज्यादा तरजीह देते हैं और उसी के आधार पर अपने मत का प्रयोग करते हैं। कैडर वोट के मामले में हम इसे लागू नहीं कर सकते क्योंकि कैडर वोट तो पार्टी को मिलना ही मिलना है फिर चाहे पार्टी का प्रत्याशी कितना ही अच्छा या खराब क्यों न हों।

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल तो ये है कि क्या वाकई एक्जिट पोल के नतीजे पक्षपात पूर्ण होते हैं और जनता इससे नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है? सर्वे के नतीजों की निष्पक्षता पर सवाल हमेशा से उठते रहे हैं लेकिन अगर सर्वे के संपूर्ण रॉ डाटा को भी संबंधित एजेंसियां सार्वजनिक करे तो कुछ हद तक इस सवाल को जवाब तो मिल ही सकता है। ये बात अलग है कि जिस पार्टी की संभावित हार दिखाई जाएगी उसके नेता तो हमेशा ही इन सर्वे के निष्पक्ष होने पर सवाल उठाते रहेंगे। वैसे भी ये सर्वे सैंपल के आधार पर होते हैं और उसी के आधार पर पूरे प्रदेश की सभी सीटों में किसी भी पार्टी की संभावित जीत या हार का आंकलन एजेंसियां करती हैं। इन सर्वे के आधार पर हम पूर्ण रूप से ये नहीं मान सकते की फलां राज्य में फलां दल की सरकार बनेगी ही क्योंकि जनता ने कई बार इन एक्जिट पोल को गलत भी साबित किया है, ऐसे में इसका जनता पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ने की बात को भी आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता।

बहरहाल सर्वे चाहें कुछ कह रहें हों, किसी को खुश की वजह तो किसी को दुखी कर रहे हों, लेकिन असल फैसला तो जनता की अदालत में ही होगा ऐसे में देखना रोचक होगा कि 8 दिसंबर को किसके चेहरे पर जीत खुशी होगी और किसके चेहरे पर हार का गम।

deepaktiwari555@gmail.com

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