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जनभावना नहीं राहुल गांधी की चिंता !

प्रयास
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जब चुनाव की घड़ी करीब आई तो यूपीए सरकार को जनभावना का ख्याल आया और दागियों को बचाने के वाले अध्यादेश के साथ ही मनमोहन कैबिनेट ने सर्वसम्मति से इस पर संसद में विचाराधीन बिल को भी वापस लेने का फैसला कर लिया। ये वही कैबिनेट थी जिसने कुछ दिन पहले ही दागियों को बचाने वाले अध्यादेश को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था और इन्हें इंतजार था उस पल का जब राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी इस अध्यादेश पर दस्तख्त कर देते और दागियों की बल्ले बल्ले हो जाती। (जरुर पढ़ें- सियासी ड्रामे के जरिए ही सही, कुछ तो अच्छा हुआ !)

जाहिर है अगर अब जनभावना के चलते ही इस अध्यादेश को वापस लिया गया है तो यही जनभावना तो उस वक्त भी थी जो कि अब है। चंद दिनों में तो देश की जनता ने अध्यादेश को लेकर अपनी भावना में परिवर्तन नहीं किया था लेकिन मनमोहन कैबिनेट ने फिर भी ऐसा किया क्योंकि ये न तो ये कोई जनभावना थी और न ही सरकार का रुख दागियों के खिलाफ एकाएक बदल गया।

दरअसल ये भावना थी कांग्रेस युवराज राहुल गांधी की, ये भावना थी कांग्रेस के उन रणनीतिकारों की जिन्होंने राहुल को जनता की नजरों में हीरो बनाने के लिए ये पूरी स्क्रिप्ट तैयार की थी जिसे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अजय माकन की प्रेस कांफ्रेंस में पढ़ा था। राहुल ये बात अच्छी तरह जानते थे कि दागियों को बचाने वाला ये अध्यादेश भले ही उनकी पार्टी की मजबूरी हो लेकिन अगर समय रहते इसे वापस नहीं लिया गया तो 2014 में इस अध्यादेश के बहाने समूचा विपक्ष यूपीए की हैट्रिक और उनके प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब पर पानी फेरने में अहम भूमिका अदा कर सकता है।

ये इसलिए भी क्योंकि जिस अध्यादेश को सोनिया गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस कोर ग्रुप ने हरी झंडी दी हो, उस अध्यादेश की जानकारी राहुल गांधी को न हो ये तो संभव नहीं है।

अब यूपीए सरकार भले ही जनभावना की दलील दे रही हो लेकिन अगर वाकई में इन्हें जनभावना की इतनी ही चिंता है, फिर तो ऐसे कई मामले हैं जिन पर सरकार को जनभावना के अनुरूप ही अमल करना चाहिए फिर चाहे वह राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की बात हो या फिर सरकार में शामिल भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्रवाई की बात हो। विदेशी बैंकों में जमा कालेधन को भारत में वापस लाने की बात हो या फिर अपने धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान की कायराना हरकतों पर उसे सबक सिखाने की बात हो।

लेकिन आज तक यूपीए सरकार को जनभावना का ख्याल नहीं आया क्योंकि इस सब को लेकर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी ने अपनी भावना का सार्वजनिक रुप से प्रधानमंत्री की धज्जियां उड़ाते हुए कभी प्रदर्शन नहीं किया। राहुल गांधी अहम मौके पर सार्वजनिक मंच से नदारद ही दिखाई दिए।

आज राहुल के बहाने यूपीए सरकार को जनभावना का ख्याल आ रहा है क्योंकि सरकार साउथ ब्लॉक, रायसीना हिल्स से नहीं बल्कि 10 जनपथ से चल रही है। आज मनमोहन सिंह को जनभावना का ख्याल आ रहा है क्योंकि 2014 में राहुल गांधी को पीएम बनाने के लिए किसी बहाने उन्हें जमीन तैयार करनी है। ये सब करने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट ने सिर्फ 15 मिनट का ही वक्त लिया जबकि देश से जुड़े अहम मुद्दों पर अपना मुंह खोलने में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 15 महीने तक का वक्त लगा देते हैं। जय हो मनमोहन सिंह की, जय हो यूपीए सरकार की और जय हो देश की जनता की क्योंकि उम्मीद है कि चुनाव में वोट देते वक्त देश की जनता अपनी भावना का सही प्रदर्शन करेगी और जनभावनाओं का हवाला देकर अपने सियासी फायदे के लिए जनभावनाओं से खिलवाड़ करने वालों को करारा सबक सिखाएगी।

deepaktiwari555@gmail.com

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