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हिंदी भले ही आज अपने सम्मान के लिए आज विदेशी भाषा अंग्रेजी की मोहताज हो गई है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रुप में मुख्य धारा में नहीं लाया जा सकता। निश्चित तौर पर अगर हम चाहें तो हिंदी को उसका सम्मान वापस दिला सकते हैं। लेकिन ये भी सच है कि सिर्फ वर्ष में एक दिन 14 सितंबर को एक सरकारी आयोजन मात्र से या फिर हिंदी पखवारा मनाने मात्र से हिंदी सम्मानजनक भाषा के रुप में मुख्य धारा में नहीं लाई जा सकती है।
छत में अगर छेद हो तो वह ऊपर से ही बंद होता है नीचे से नहीं, नीचे से अगर छेद बंद करने कोशिश करेंगे तो लीकेज तो होगा ही। हिंदी भाषा के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। दिमाग पर जोर डालकर बताइए कि आप में से कितने लोगों ने आखिरी बार हमारे देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधनमंत्री मनमोहन सिंह को हिंदी में बोलते हुए सुना है। ज्यादा जोर डालने पर 26 जनवरी या 15 अगस्त की तारीख शायद आपको याद आ भी जाए लेकिन क्या ये काफी है अपना सम्मान खो चुकी हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रुप में मुख्यधारा में लाने के लिए..? मनमोहन सिंह तो 15 अगस्त को हिंदी में बोल भी लेते हैं लेकिन राष्ट्रपति महोदय तो इन मौकों पर भी अंग्रेजी बोलने से गुरेज नहीं करते हैं।
देश की जनता संसद की कार्यवाही का सीधा प्रसारण देखती औऱ सुनती है लेकिन हमारे प्रधानमंत्री के साथ ही कितने केन्द्रीय मंत्री और सांसद महोदय हिंदी में बहस करते हैं या फिर दूसरे सांसदों के सवालों का जवाब देते हैं..? जब सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोग ही हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं और अंग्रेजी भाषा को तवज्जों देते हैं तो फिर हिंदी तो अपना सम्मान खोएगी ही।
हिंदी को सम्मानजनक भाषा के रुप में मुख्यधारा में वापस लाना है तो शुरुआत ऊपर से ही करनी होगी। हिंदी को सम्मान दिलाने की बात करने वाले सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों को पहले खुद हिंदी को अपनाना होगा। उन्हें खुद हिंदी का सम्मान करना सीखना होता तभी जाकर आमजन भी हिंदी को तवज्जो देगा। सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोगों को हरदम अंग्रेजी में बात करते देख अभी तक तो सभी यही समझते हैं कि अंग्रेजी ही सब कुछ है लेकिन इस सोच को बदलना होगा और ये तभी संभव है जब सर्वोच्च शिखर पर बैठे लोग कम से कम देश की जनता को संबोधित करते हुए, संसद नें बहस के दौरान गर्व से हिंदी में बात करें।
इसके साथ ही सभी हिंदुस्तानियों को ये संकल्प लेना होगा कि वे हिंदी को उसका सम्मान वापस दिलाकर उसे मुख्य धारा में लाने का हर संभव प्रयास करेंगे और ये तभी हो सकता है जब सभी लोग ज्यादा से ज्यादा हिंदी में बात करें, हिंदी में अपने काम करें। जहां जरुरी है वहां बेशक अंग्रेजी का इस्तेमाल करें लेकिन हिंदी के अपमान की कीमत पर नहीं।
deepaktiwari555@gmail.com
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