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हिंदी शर्म नहीं गर्व की भाषा contest

प्रयास
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बात ज्यादा दिन पुरानी नहीं है, जब मैं अपने मित्रों के साथ गुलाबी नगरी जयपुर के पास स्थित नाहरगढ़ किले के भ्रमण पर था। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र होने के कारण बड़ी संख्या में देशी पर्यटकों के साथ ही विदेशी पर्यटक भी भारत भ्रमण के दौरान जयपुर जरुर आना चाहते हैं। नाहरगढ़ में भी हमें बड़ी तादाद में देशी के साथ विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा देखने को मिला।

युवा विदेशी पर्यटकों का एक समूह काफी खुश दिखाई दे रहा था। हमने उनसे उनके भारत भ्रमण और इस किले के बावत उनका अनुभव जानने के लिए उनसे अंग्रेजी में बात करने की कोशिश की तो मालूम चला की उनकी अंग्रेजी बहुत अच्छी नहीं है। वे कहने लगे कि उन्हें न तो यहां की भाषा बोलनी आती है और न ही वे अंग्रेजी ठीक से बोल पाते हैं। बातों बातों में इतना पता चला कि वे पर्यटकों का ये समूह बेल्जियम से आया था। बेल्जियम में बोले जाने वाली भाषा डच, फ्रेंच और जर्मन भाष में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे। जाहिर है वे या तो अंग्रेजी में बात नहीं करना चाहते थे या फिर अपने देश की भाषा बोलने में ही वे गर्व महसूस कर रहे थे।

ये अनुभव मैं सिर्फ इसलिए साझा कर रहा हूं क्योंकि हमारे देश में जहां की मातृभाषा हिंदी है, बड़ी संख्या में लोग उसे बोलने में, लिखने में गर्व की बजाए शर्म महसूस करते हैं। जबकि दूसरे देशों में वहां के लोग शायद अंग्रेजी से ज्यादा अपनी भाषा को ज्यादा महत्व देते हैं और वे दुनिया के किसी भी कोने में हों अपनी भाषा बोलने में गर्व महसूस करते हैं, जबकि हम हिंदुस्तानियों के साथ इसका एकदम उल्ट है। वे खुलकर ये कहने में शर्म महसूस नहीं करते कि उन्हें अंग्रेजी भाषा नहीं आती लेकिन हमारे देश में हमें अंग्रेजी न आने के सवाल पर लोग शर्म महसूस करते हैं और अंग्रेजी बोलनी आती है कहने पर गर्व महसूस करते हैं, चाहे हमें ढंग से अंग्रेजी बोलनी भी न आती हो।

हम शायद ये सोचते हैं कि हिंदी अब सिर्फ गरीबों और अनपढ़ों की ही भाषा है जबकि अंग्रेजी बोलने से हम बड़े बन जाएंगे, हमारा मान बढ़ जाएगा, लोग हमें सम्मान की नजरों से देखेंगे जबकि अगर हम हिंदी में बात करेंगे तो लोग हमें हीन दृष्टि से देखेंगे, लोग हमारा मजाक बनाएंगे। जहां जरुरत हो वहां पर अंग्रेजी पर बात करना तो समझ में आता है लेकिन जहां आमने – सामने वाले दोनों लोग हिंदी समझते हों, वहां पर भी क्या अंग्रेजी में बात करने की जरुरत है..? ठीक है मत बात करिए हिंदी में लेकिन जरुरत पड़ने पर हिंदी में बोलने पर कम से कम शर्म की बजाए गर्व तो मसहूस कीजिए और ये कहने में मत हिचकिचाहट महसूस कीजिए की हिंदी हमारी मातृभाषा है।

वास्तव में हमें हिंदी को उसका सम्मान वापस दिलाना है तो इसकी शुरुआत हमें ही करनी होगी, कोई आपसे ये नहीं कहेगा कि आप हिंदी में ही बात करो, हिंदी में ही अपने सारे काम करो, बस फर्क सिर्फ सोच का है कि आप अपनी मातृभाषा के लिए क्या सोचते हैं..? क्या आप वास्तव में अपनी मातृभाषा का सम्मान करते हैं..? इसका जवाब आप ही के पास है, जिस दिन आपने इसका जवाब खोज लिया यकीन मानिए हिंदी अपना सम्मान, अपनी जगह खुद खोज लेगी और उसे अपने सम्मान के लिए फिर किसी विदेशी भाषा का मोहताज नहीं होना पड़ेगा।

deepaktiwari555@gmail.com

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