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प्याज न खाने से नहीं मरता कोई..!

प्रयास
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खाने में और सलाद में प्याज का मजा तो मेरे जैसे प्याज के शौकीन ही समझ सकते हैं..! मजे से प्याज खा भी रहे थे, बाजार में प्याज 35 से 40 रुपए किलो मिल भी जा रहा था लेकिन सभी समाचार चैनलों के साथ ही अख़बारों में “प्याज के दाम आसमन में”, “थाली से प्याज गायब” टाईप ख़बरों ने प्याज को एक बेशकीमती वस्तु बना दिया है..! प्याज की तुलना सेब के दामों सी की जाने लगी तो जो प्याज 35 से 40 किलो रुपए बिक रहा था वो प्याज रातों रात 60 से 80 रुपए किलो बिकने लगा..! (जरुर पढ़ें- एक प्याज की ताकत)

मीडिया का भी अगर प्याज पर ध्यान केन्द्रित नहीं होता तो शायद प्याज पर न तो महंगाई के पंख लगते और न ही मैं आज ये पोस्ट लिख रहा होता और आज एक बेशकीमती वस्तु बना प्याज सब्जी वाली के ठेले में आलू के बराबर में पड़ा – पड़ा चुपचाप बिक रहा होता..!

सिर्फ प्याज से अगर किसी भूखे का पेट भरता तो बात समझ में भी आती और प्याज के दामों को लेकर मच रहे हो हल्ले में भईया हम भी शामिल हो जाते लेकिन सच तो ये है कि किसी गरीब परिवार में सब्जी प्याज के बिना तो बन सकती है, वह प्याज के सलाद के बिना तो खाना खा सकता है लेकिन उस परिवार के पास सब्जी और रोटी खरीदने के पैसे ही अगर न हों तो क्या कर लिजिएगा..?

जाहिर है उसके पास अगर पैसा है भी तो उसकी पहली प्राथमिकता रोटी, सब्जी, दाल चावल ही होगी न की सिर्फ प्याज..! बावजूद इसके प्याज को लेकर तो हो हल्ला मचा है लेकिन एक गरीब परिवार दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे करेगा इसकी फिक्र किसी को नहीं है..!

दिल्ली का ही अगर उदाहरण ले लें तो कांग्रेस सरकार के 14 साल के कार्यकाल में दिल्ली में 737 लोगों की मौत की वजह भूख और गरीबी रही है..! विश्व के 95 करोड़ भूखों में से 45 करोड़ तो भारत में ही है, जिनमें से हर रोज कई लोग भूख के चलते दम तोड़ देते हैं..! मुझे नहीं लगता कि इनमें से कोई भी एक ऐसा रहा होगा जिसकी मौत प्याज के दाम बढ़ने के कारण या प्याज न खा पाने के कारण हुई हो..!

आटा 20 से 30 रुपए किलो मिल रहा है, खाने लायक चावल 30 रुपए से कम में नहीं मिल रहा है, दालें 70 से 80 रुपए किलो मिल रही हैं और सब्जियों के दाम तो खुद सब्जी वाला किलो में नहीं बताता कि कहीं खरीदने वाला ही न वापस लौट जाए..! ऐसे में सिर्फ एक प्याज के दामों को लेकर इतना हो हल्ला कहां तक सही है..? और तो और प्याज के दाम पर सरकार भी बावली हुई जा रही है..! खासकर दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को शायद 1998 याद आ रहा है और आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता से बेदखल होने का डर सता रहा है तो 1998 में सत्ता गंवाने वाली भाजपा को 1998 का ये दोहराव सत्ता की एक सीढ़ी नजर आ रही है..!

शायद इसलिए ही भाजपा प्याज की बढ़ती कीमतों को सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है तो सरकार प्याज के सरकारी स्टॉल लगाकर जनता की नाराजगी दूर करने का प्रयास कर रही है..!

कुल मिलाकर प्याज के नाम पर सिर्फ सियासत हो रही है..! समाचार चैनल और अखबार अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं, वर्ना एक प्याज की इतनी मजाल कि वो बिना कटे ही लोगों की आंख से आंसू टपका दे..!

deepaktiwari555@gmail.com

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