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दागी नेता- राजनीतिक दल नहीं, जनता है दोषी !

प्रयास
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खुद पर बन आई तो एक बार फिर से सब एक हो गए, कुछ भी करना पड़ जाए लेकिन हमारे राजनीतिक दल दागी नेताओं पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नहीं मानेंगे फिर चाहे कानूनी संशोधन ही क्यों न करना पड़े..! एक हो भी क्यों न..? आखिर सफेद कुर्ते पर लगे दाग ही तो इनको कानून की नजर से बचाते हैं..!  (पढ़ें- नेता जी, दाग अच्छे हैं..!) तभी तो सत्ता के लिए एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद को पार कर जाने वाले हमारे नेतागण एक बार ठीक उसी तरह एक हो गए जैसे संसद और विधानसभा में अपने वेतन भत्तों को बढ़ाने के लिए सारे गिले शिकवे भुला कर हाथ मिला लेते हैं..! इस बार तो बात इनके राजनीतिक भविष्य पर आ गयी थी तो फिर क्यों न एक होते..! वैसे भी ऐसे मौके कम ही आते हैं जब सभी राजनीतिक दल एक छतरी के नीचे खड़े होकर एक सुर में बात करते हैं वर्ना तो ये लोग एक दूसरे को सत्ता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा समझते हैं और इस रोड़े से पार पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं..!

राजनीति में रहेंगे तभी तो न कुर्सी के लिए एक दूसरे से लड़ेंगे इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले के विरोध में एक ही सुर में गुनगुनाना शुरु कर दिया है जिसके तहत जेल जाने या फिर सजा होने पर नेताओं के चुनाव लड़ने पर ही रोक लग जाएगी..! जनता से जुड़े किसी एक मुद्दे पर इनकी ऐसी एकजुटता देखने को नहीं मिलती जितनी कि अपने व्यक्तिगत लाभ से जुड़े मसलों पर..!  (पढ़ें- और नेतानगरी में छाया मातम..!)

जनता के सामने ये नेता भले ही अपराध पर अंकुश लगाने और अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की बड़ी बड़ी बातें करते हैं लेकिन यही लोग चुनाव में बड़ी संख्या में अपराधिक इतिहास वाले नेताओं को टिकट देने से गुरेज नहीं करते..! चुनाव के वक्त तो जेल की सलाखों के पीछे अपने अपराध की सजा काट रहे नेता ही इन्हें सबसे जिताऊ प्रत्याशी लगते हैं..!

आंकड़े इसको साबित भी करते हैं कि किस तरह राजनीतिक दल आपराधिक इतिहास वाले नेताओं को दिल खोलकर टिकट बांटते हैं और उनके दम पर सत्ता हासिल करने के ख़्वाब संजोते हैं..!

आंकड़े बताते हैं कि 4807 सांसदों, विधायकों में से 30 प्रतिशत यानि कि 1460 के खिलाफ आपराधिक केस चल रहे हैं, जिनमें से राज्यसभा और लोकसभा के कुल मिलाकर 24 प्रतिशत सांसद दागी हैं तो अलग अलग राज्यों की विधानसभाओं के 31 प्रतिशत विधायक दागी हैं। ऐसे नहीं है कि दागियों पर कृपा किसी एक राजनीतिक दल की ही है। देश के दोनों प्रमुख राजनीजित दलों कांग्रेस और भाजपा में तो मानो इसकी होड़ लगी हुई है। कांग्रेस के टिकट पर जीतकर 21 प्रतिशत दागी सांसद या विधायक बने तो भाजपा के टिकट पर जीतकर सांसद और विधायक बनने वालों का प्रतिशत 31 है।

ऐसा भी नहीं था कि दागी मैदान में थे और अपने आप चुनाव जीत गए इसमें राजनीतिक दलों से बड़ा हाथ उस क्षेत्र की जनता का है, जिस जिस संसदीय क्षेत्र या विधानसभा से ये दागी चुनाव जीतकर संसद या विधानसभा में पहुंचे..! उस क्षेत्र की जनता भी इसके लिए उतनी ही दोषी है क्योंकि अगर जनता ऐसे दागियों को अपना वोट ही नहीं देती तो ये दागी कभी भी लोकतंत्र के मंदिर में कदम रखना तो दूर चुनाव लड़ने से पहले भी सौ बार सोचते..! लेकिन देश की संसद और राज्यों की विधानसभा में 30 प्रतिशत दागी सांसदों और विधायकों की मौजूदगी ये बताती है कि राजनीतिक दलों के साथ ही देश की जनता ने भी इनका भरपूर साथ दिया..!

अब जब सर्वोच्च न्यायालय ने दागियों के रास्ते में दीवार खड़ी कर दी है तो राजनीतिक दलों के पेट में दर्द होने लगा है और वे एकजुट होकर कानूनी संशोधन की वकालत कर रहे हैं..! इनकी एकजुटता देखकर लगता भी है कि ये लोग एक बार फिर से अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे और बेखौफ होकर दागी चुनावी मैदान में ताल ठोकेंगे और जनता भी इन दागियों को सिर आंखों पर बैठाकर इन्हें भगवान बनाकर लोकतंत्र के मंदिर में बैठने का पूरा मौका देगी..!

अब तक ऐसा ही तो होता आया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस तस्वीर को बदलने की ताकत भी जनता के पास ही है..! जिस दिन लोग अपने वोट की ताकत को पहचान जाएंगे उस दिन किसी भी दल का कोई दागी नेता चुनाव जीतना तो दूर चुनाव लड़ने की भी नहीं सोचेगा लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या कभी ऐसा होगा..?

उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि 2013 में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली के साथ ही मिजोरम में होने वाले विधानसभा चुनावों और इसके बाद 2014 के आम चुनाव में जनता अपने वोट की ताकत से दागी नेताओं और इनको संरक्षण देने वालों को सबक सिखाएगी..!

deepaktiwari555@gmail.com

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