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नीतीश तो 2002 से खा रहे हैं मरने की दवा..?

प्रयास
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एनडीए से जद यू के अलग होने की संभावनाओं के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक शेर पढ़ते हुए अपने दिल की बात कुछ यूं कही…दुआ देते हैं जीने की, दवा देते हैं मरने की…नीतीश कुमार के इस शेर का मतलब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस शेर में दुआ का क्या मतलब है और दवा के क्या मायने हैं।

जाहिर है भाजपा-जद यू गंठबंधन को न तोड़ने की भाजपा की मंशा को नीतिश ने दुआ में व्यक्त किया है तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने को नीतीश ने दवा के रुप में..! कुल मिलाकर नीतीश के तेवरों और इस शायराना अंदाज का साफ मतलब है कि नीतीश 2014 के लिए मोदी को भाजपा के संभावित पीएम पद के उम्मीदवार के रुप में किसी भी कीमत में स्वीकार नहीं करना चाहते हैं फिर चाहे इसके लिए जद यू और भाजपा का 17 साल पुराना साथ ही क्यों न छूट जाए..!

सेक्यूलरिज्म की बात करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मोदी 17 सालों तक सेक्यूलर नजर आते हैं लेकिन बात जब प्रधानमंत्री की कुर्सी की आती है तो यही मोदी नीतीश कुमार को सांप्रदायिक नजर आते हैं। सिर्फ सांप्रदायिक नजर आते तो ठीक था लेकिन यहां तो नीतीश को मोदी “मरने की दवा” लगने लगे हैं..!

ये वही नीतीश कुमार हैं जो 2002 में गुजरात में हुए दंगों के वक्त केन्द्र की तत्कालीन एनडीए सरकार में रेलमंत्री थे। दंगों की वजह से ही नीतीश मोदी को “मरने की दवा” कह रहे हैं लेकिन अगर वाकई में ऐसा है तो सवाल तो नीतीश पर उठता है कि आखिर क्यों नीतिश ने तब रेल मंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देकर अपने रास्ते अलग कर लिए..?

ये छोड़िए इसके बाद क्यों उसी मोदी वाली भाजपा के साथ मिलकर बिहार में विधानसभा चुनाव भी लड़ा..? तब तक भी नीतीश को मोदी सांप्रदायिक नहीं दिखाई दिए..! नीतीश यहां ये तर्क भले ही दे सकते हैं कि वे समय समय पर मोदी का विरोध करते रहे हैं लेकिन इसके बाद भी तो नीतीश मोदी वाली पार्टी के साथ मिलकर ही बिहार में सरकार चला रहे हैं..!

अब मोदी वाली भाजपा में जब मोदी का कद बढ़ रहा है तो नीतीश कुमार एंड कंपनी के पेट में दर्द होने लगा है और वे मोदी के नाम पर भाजपा से गंठबंधन तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं..!

नीतीश कुमार जी ये तब भी मोदी वाली ही भाजपा थी जब आप 2002 में एनडीए सरकार में रेल मंत्री थे…ये तब भी मोदी वाली ही भाजपा थी जब आपने बिहार में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और ये अब भी मोदी वाली वही भाजपा है जिससे अब आप “जीने की दुआ” के साथ “मरने की दवा”  खिलाने की बात कर गंठबंधन तोड़ने की बात कर रहे हैं..!

नीतीश जी शेर तो आपने आज पढ़ा लेकिन आपके ही अनुसार “मरने की दवा” तो आप 2002 से खा रहे हैं क्योंकि 2002 में शाद आपसे रेलमंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छूट रहा था और उसके बाद बिहार में जद यू की सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनने का सपना आपको साकार करना था..!

सही मायने में राजनीति शायद इसी का नाम है…जब तक अपना फायदा है तब तक सब ठीक है…किसी से भी दोस्ती करने में परहेज नहीं है लेकिन जब अपना नुकसान लगने लगे या फिर सामने वाले आगे बढ़ने लगे तो उसकी टांग खींच दो..!

जद यू भी यही कर रही है…नीतीश को लगता है कि पीएम पद के उम्मीदवार के लिए मोदी के नाम पर सहमति जताने से बिहार का अल्पसंख्यक वोटर उनसे कट जाएगा तो भाजपा को लगता है मोदी की लोकप्रियता के नाम पर 2014 में उनकी नैया तर जाएगी..! लेकिन भाजपा और जद यू दोनों को ही ये नहीं भूलना चाहिए कि ख्वाब वे चाहे जितने बड़े देख लें लेकिन जनता के साथ के बिना ये साकार नहीं हो सकते… क्योंकि ये पब्लिक है…ये सब जानती है..!

deepaktiwari555@gmail.com

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