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सरबजीत को शहीद का दर्जा क्यों..? – जागरण जंक्शन फोरम

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पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में भारतीय नागरिक सरबजीत की मौत अपने आप में कई सवाल खड़े कर गयी..? सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने अपने भाई की बेगुनाही की लंबी लड़ाई लड़ी और समय – समय पर भारत सरकार ने भी इस मुद्दे को पाकिस्तान सरकार के सामने उठाया। भारत सरकार के साथ ही सरबजीत के परिजनों को सरबजीत की रिहाई के बाद भारत लौटने की पूरी उम्मीद थी लेकिन अचानक पाकिस्तान से आई एक ख़बर ने सरबजीत की रिहाई की उम्मीदों को तोड़ कर रख दिया..! पाक कैदियों के हमले में गंभीर रुप से घायल सरबजीत ने आखिरकार 2 मई की रात डेढ़ बजे लाहौर के जिन्ना अस्पताल में जिंदगी का साथ छोड़कर मौत का दामन थाम लिया।

सरबजीत को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 1990 में हुए बम विस्फोट में शामिल होने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गयी थी…जिसके बाद से ही वो पाक जेल में कैद था। पाकिस्तान का ये भी कहना था कि सरबजीत भारतीय जासूस था…ये बात अलग है कि भारत ने कभी भी सरबजीत को अपना जासूस स्वीकार नहीं किया। वहीं सरबजीत के परिवार के अनुसार उसने गलती से पाक सीमा में प्रवेश कर लिया था और पाकिस्तान सरकार ने उसे झूठे आरोप में फंसाया है…जिसके बाद से ही भारत की तरफ से सरबजीत की रिहाई की मांग उठती रही जो सरबजीत की मौत के साथ ही खामोश हो गयी..! (जरूर पढ़ें- कब तक आंख रोएगी..?)

सरबजीत की मौत पाकिस्तान जेल में बंद एक कैदी की सामान्य मौत तो बिल्कुल भी नहीं थी। भारत ने भी सरबजीत की मौत को हत्या करार देते हुए पाकिस्तान सरकार से मामले की जांच और दोषियों को सजा देने की पुरजोर मांग की। सरबजीत का शव भारत आने पर पंजाब सरकार ने सरबजीत के परिवार को आर्थिक मदद देने के साथ ही सरबजीत को शहीद का दर्जा दे दिया। सरबजीत को शहीद का दर्जा दिए जाने के पंजाब सरकार के फैसले को लेकर लोगों के अलग – अलग मत हैं। कुछ लोग पंजाब सरकार के इस फैसले को सही ठहरा रहे हैं तो कुछ लोगों का कहना है कि सरकार का ये फैसला शहादत की अवधारणा के साथ खिलवाड़ है, ऐसे में सरबजीत को शहीद का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए..! सरबजीत के बारे में जो जानकारी मौजूद है उसको देखते हुए कहीं न कहीं ये लगता है कि सरबजीत को शहीद का दर्जा देने का पंजाब सरकार का फैसला सियासी ज्यादा लगता है..!

न जाने ऐसे कितने ही सरबजीत हैं जो गलती से पाक सीमा में प्रवेश कर गए और बिना किसी अपराध के पाक जेलों में सजा काट रहे हैं, ऐसे में तो फिर उन सब को भी सरबजीत की श्रेणी में रखा जाए और मरणोपरांत शहीद का दर्जा दिया जाए..!

ये बात अलग है कि सरबजीत के मसले ने पूरे देश को एक मुद्दे पर लामबंद किया लेकिन इसे आधार मानकर सरबजीत को शहीद का दर्जा तो नहीं दिया जा सकता..! किसी भी मसले में सिर्फ एक ही उदाहरण होता है जो देश को जगाता है…सरकार को झकझोरता है और एक सशक्त आंदोलन का निर्माण करता है। जिस तरह रेप और महिला उत्पीड़न के मामले में दिल्ली गैंगरेप केस ने महिला सुरक्षा के मुद्दे पर देश को एकजुट करने के साथ ही सरकार को झकझोरा ठीक उसी तरह सरबजीत प्रकरण ने पाक जेलों में बंद भारतीय कैदियों के मसले को एक आवाज़ दी।

अगर सरबजीत भारत का जासूस होता और भारत सरकार सीमा ठोक कर इसे स्वाकार करती तो सरबजीत को शहीद का दर्जा देने की बात समझ में भी आती क्योंकि उस स्थिति में हम कह सकते कि सरबजीत देश के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर पाकिस्तान पहुंचा था लेकिन सरकार ने तो कभी इसे स्वीकार ही नहीं किया..! ऐसे में सरबजीत को शहीद का दर्जा दिया जाना सरकार का एक वर्ग विशेष के वोट हासिल करने के लिए अपने सियासी दांवपेंच से ज्यादा और कुछ नहीं है, जो कहीं न कहीं सरकार के सियाही फायदे को दर्शाता है और साथ भी शहादत की अवधारणा के साथ खिलवाड़ भी है..!

सरबजीत की रिहाई को लेकर सरबजीत के परिजनों ने खुद के बूते एक लंबी लड़ाई लड़ी जिसके चलते न सिर्फ सरबजीत भारतीय मीडिया की सुर्खियां बना बल्कि सरकार ने भी सरबजीत के मसले को पाकिस्तान के सामने उठाया। मीडिया के जरिए देशवासी सरबजीत को पहचान चुके थे और जब सरबजीत पर हमले की ख़बर आयी तो इस मुद्दे ने देश को लामबंद किया जबकि पाक जेलों में बंद दूसरे कैदी गुमानी के अंधेरे में ही खोए रहे..!

कुल मिलाकर सरकार से अब इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि वह सरबजीत की मौत से सबक लेकर पाक जेलों में बिना किसी अपराध के सालों से कैद भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए पाकिस्तान के सामने पुरजोर तरीके से आवाज उठाए ताकि पाक जेल में कोई और भारतीय कैदी सरबजीत की मौत न मरे..!  (जरूर पढ़ें- और कितने सरबजीत..?)

deepaktiwari555@gmail.com

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