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मोदी के खिलाफ क्यों हैं नीतीश..?

प्रयास
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2014 में एनडीए की सरकार बनने का तो कुछ पता नहीं लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर तकरार चरम पर पहुंच गयी है। एनडीए का कुनबा बिखरने को है लेकिन पीएम की कुर्सी को लेकर रार में कोई कमी नहीं है..! यहां तक तो ठीक था लेकिन अब गड़े मुर्दे उखाड़कर एक दूसरे के सिर आरोप मढ़ने का खेल शुरु हो गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा की तरफ से संभावित पीएम के उम्मीदवार हैं लेकिन एनडीए का 17 साल पुराने घटक दल जनता दल यूनाइटेड को भाजपा की तरफ से पीएम की उम्मीदवारी के लिए एक धर्मनिरपेक्ष चेहरा चाहिए क्योंकि जद यू मोदी को 2002 के गुजरात दंगों की वजह से सांप्रदायिक मानती है..!

जद यू को मोदी के मुस्लिम टोपी न पहनने पर भी ऐतराज है और जदयू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि मोदी उनको बिल्कुल भी मंजूर नहीं है। भाजपा के कुछ नेताओं को मोदी के खिलाफ जदयू नेताओं की बयानबाजी रास नहीं आ रही है ऐसे में भाजपा ने नीतिश कुमार को ही गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। भाजपा नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार तत्कालीन रेल मंत्री थी ऐसे में रेल मंत्री गोधरा में हुए साबरमती ट्रेन अग्निकांड रोक देते तो गुजरात दंगे नहीं होते।

नीतीश कहां चुप रहने वाले थे वे पलटवार करते हुए कहते हैं कि उन्होंने साबरमती ट्रेन अग्निकांड की रिपोर्ट संसद में पेश की थी और दंगे रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी न की उनकी।

कुल मिलाकर भाजपा और जदयू के बीच तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है जो साफ इशारा कर रही है कि निकट भविष्य में एनडीए के कुनबे में जदयू के दिखाई देने की उम्मीद कम ही है..! (जरूर पढ़ें- नरेन्द्र मोदी-नीतिश कुमार…क्यों है तकरार ?)

मोदी को सांप्रदायिक बताने वाले बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार की एक बात समझ में नहीं आती..? नीतीश कहते हैं कि वे ऐसे नेता का नाम भाजपा से पीएम की उम्मीदवारी के लिए स्वीकार करेंगे जो जरूर पड़ने पर टोपी भी पहने और तिलक लगाने से भी जिसे कोई ऐतराज न हो..!

नीतीश को अगर मोदी सांप्रदायिक लगते हैं तो फिर 2002 में एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने गुजरात में दंगों के बाद क्यों खुद की पार्टी को एनडीए से अलग नहीं किया..? उस वक्त क्यों नीतीश ने रेल मंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देकर अपने रास्ते अलग कर लिए..?

क्यों नीतीश कुमार ने उसके बाद बिहार में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और अपनी सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन लिया..?

जाहिर है 2002 में नीतीश रेल मंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाए और उसके बाद बिहार में सत्ता के मोह में नीतीश बंधे रहे और भाजपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर सरकार चलाते रहे..!

2002 से 2012 तक जिस नीतीश को मोदी सांप्रदायिक नहीं दिखाई दिए वो मोदी अब अचानक से नीतीश की आंख की किरकिरी बन गए हैं..! नीतीश को जब लगा कि उनकी ही तरह एक राज्य का मुख्यमंत्री पीएम की कुर्सी की दौड़ में शामिल होने की ओर बढ़ रहा है तो नीतीश को 10 साल पुराने 2002 के गुजरात दंगों की भी याद आ गयी..!

जाहिर है पीएम की कुर्सी की महत्वकांक्षा तो नीतीश भी रखते होंगे ऐसे में कैसे नीतीश जिस मोदी को वे खुद के बराबर के कद का नेता मानते हैं उन्हें पीएम की कुर्सी की दौड़ में इतनी आसानी से आगे निकल जाने देंगे..! (जरूर पढ़ें- मोदी, नीतीश और शिवराज..!)

राजनीति में कुछ भी संभव है ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जदयू का मोदी का विरोध करना सिर्फ जदयू का ही विरोध है या फिर इसके पीछे कुछ भाजपा के ऐसे नेता है जो जदयू के सहारे मोदी के नाम पर विरोध की लकीर को लंबी करना चाहते हैं ताकि मोदी पीएम की उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो जाएं और एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में पीएम की कुर्सी के लिए वे दावेदारी कर सकें..!

बहरहाल तकरार अपने चरम पर है ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि 17 साल पुरानी भाजपा और जदयू की दोस्ती टूटने से एनडीए का कुनबा बिखरेगा या फिर जदयू की 17 साल पुरानी दोस्ती की खातिर भाजपा मोदी के पीएम की कुर्सी के अरमानों पर पानी फेर देगी..!

deepaktiwari555@gmail.com

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