Menu
blogid : 11729 postid : 289

अन्न के लिए तरसते अन्नदाता

प्रयास
प्रयास
  • 427 Posts
  • 594 Comments

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एनडीए के शासनकाल से यूपीए शासनकाल की तुलना करते हुए संसद में कहते हैं कि भारत की कृषि विकास दर यूपीए शासन में 3.5 प्रतिशत रही जबकि एनडीए के शासनकाल में ये दर सिर्फ 2.9 प्रतिशत थी। आंकड़ों के बाजीगरी से प्रधानमंत्री ने संसद में यूपीए सरकार की जमकर पीठ थपथपाई।

कृषि विकास दर पर प्रधानमंत्री इठलाते हुए तो दिखाई दिए लेकिन किसानों के लिए 2009 के आम चुनाव से ठीक पहले 2008 में 4 करोड़ 29 लाख किसानों के लिए शुरु की गयी 52 हजार करोड़ की कर्ज माफी योजना में धांधली पर वे सिर्फ दोषियों के खिलाफ सिर्फ जांच का आश्वासन ही दे पाए।

ये एक कृषि प्रधान देश का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि एक तरफ देश के प्रधानमंत्री बढ़ती विकास दर पर इठलाते हैं तो दूसरी तरफ कर्ज के बोझ तले दबे किसानों के लिए 52 हजार करोड़ की कर्ज माफी योजना में करीब 10 हजार करोड़ की धांधली सामने आती है। इससे भी दुखद पहलू ये है कि बढ़ती कृषि विकास दर के बावजूद किसानों की आत्महत्या की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं और एक आंकड़े के मुताबिक आज भी देश में हर महीने करीब 70 किसान मौत को गले लगा रहे हैं।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक कैग ने 25 राज्यों के 52 जिलों में जिन 90 हजार 567 मामलों की जांच की उनमें से करीब 22.32 फीसदी यानि 20 हजार 206 मामलों में गड़बड़ी पाई गयी। कैग के मुताबिक इस योजना को लागू करने में जबरदस्त धांधली हुई है। जो किसान इस योजना के लिए पात्र थे उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिला जबकि अपात्र लोगों को योजना का लाभ दे दिया गया। जाहिर है अगर योजना में धांधली नहीं होती और पात्र किसानों को ही इसका लाभ मिलता और उनका कर्ज माफ कर दिया जाता तो शायद कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं होते।

सरकार भले ही अब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दे रही हो लेकिन देश में अन्नदाता के नाम पर हुई करीब 10 हजार करोड़ की इस गड़बड़ी का जवाब किसी के पास नहीं है।

हमारे प्रधानमंत्री यूपीए के कार्यकाल में कृषि विकास दर में वृद्धि पर खुशी मना रहे हैं लेकिन ये भी कड़वी सच्चाई है कि देश में किसानों की आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ें कहते हैं कि 2010 में देशभर में 15 हजार 964 किसानों ने आत्महत्या की जबकि 2011 में भी ये आंकड़ा करीब 15 हजार के आस पास ही है। 1995 से हम अगर ये आंकड़ा देखें तो 1995 से अब तक करीब 2 लाख 70 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ये सच्चाई उस भारत देश की है जिसकी 60 प्रतिशत अर्थव्यवस्था सिर्फ कृषि पर निर्भर है।

आरटीआई से मिली एक जानकारी के अनुसार 2007 से 2012 देश में सबसे अधिक किसानों ने सूदखोरों और महाजन से कर्ज लिया हुआ है। सूदखोरों और महाजन से कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या सवा लाख तो करीब 53 हजार 902 किसान परिवारों ने व्यापारियों से कर्ज लिया है जबकि बैंकों से 1 लाख 17 हजार 100 किसानों ने तो को-ऑपरेटिव सोसोयटी से करीब 1 लाख 14 हजार 785 किसानों ने कर्ज लिया है। वहीं सरकार से कर्ज लेने वाले किसानों की संख्या करीब 14 हजार 769 हजार है तो अपने रिश्तेदारों और मित्रों से कर्ज लेने वाले किसान परिवारों की संख्या करीब 77 हजार 602 है।

जाहिर है किसान आज भी सूदखोरों और महाजनों के चक्कर में फंसे हुए हैं जो सूद के रूप में किसानों के खून की एक-एक बूंद तक चूसने में पीछे नहीं हटते। मजबूरन किसान आत्महत्या पर मजबूर होते हैं। सरकार किसानों की आत्महत्या के मामलों में कमी आने की बात कर इसके क्रेडिट लेने से नहीं चूकती लेकिन सवाल ये है कि अगर देश में एक भी किसान अगर आत्महत्या कर रहा है तो आखिर क्यों..? आखिर एक किसान की जान की कीमत क्यों नहीं सरकार में बैठे लेगों को समझ में आती..? आखिर क्यों ये जानने का प्रयास नहीं किया जाता कि किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर क्यों मजबूर हुआ..? लेकिन किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में कमी को सरकार अपनी उपलब्धि मानती है..! लेकिन सरकार ये नहीं सोचता कि आखिर अन्नादाता अनाज के एक-एक दाने के लिए क्यों मोहताज हुआ..?

deepaktiwari555@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply