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जब लाठीचार्ज पर प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफा

प्रयास
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देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस में सरेराह एक लड़की का गैंगरेप होता है…गैंगरेप करने वाले दरिंदगी की सारी हदें पार कर जाते हैं। पीड़ित लड़की के लिए इंसाफ की मांग करने और आरोपियों की सजा दिलाने की मांग को लेकर राजपाथ पर देश का गुस्सा दिखाई देता है तो उन पर लाठियां भांजी जाती हैं…पानी की बौछार की जाती है। न ही राष्ट्रपति…न ही प्रधानमंत्री और न ही सरकार में शामिल कोई जिम्मेदार शख्स इस आक्रोश का शांत करने की कोशिश करता है। कोशिश करती है दिल्ली पुलिस लाठियां भांज कर, पानी की बौछार कर। ये सब क्यों हुआ इसकी जिम्मेदारी कोई भी जिम्मेदार शख्स नहीं लेता है..!

देशभर में समय – समय पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के कई फैसलों के खिलाफ देश के अलग- अलग हिस्सों में लोगों का गुस्सा फूटता है…अपने हक की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर कर अपना विरोध जताते हैं…लेकिन यहां भी लोगों को मिलती हैं पुलिस की लाठियां..! यहां भी कोई जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आता..! (पढ़ें- दिल्ली गैंगरेप- “ठीक है” लोग इसे भी भूल जाएंगे !)

इसी बीच देश के किसी हिस्से से रेल दुर्घटना की ख़बर आती है…सैंकड़ों यात्रियों का सफर उनका आखिरी सफर साबित होता है…मुआवजे का मरहम लगाकर जख्मों को भरने का काम शुरु हो जाता है लेकिन जिम्मेदारी कोई नहीं लेता..! सरकार चाहे किसी भी दल की हो लेकिन हर कोई सिर्फ सत्ता सुख में डूबे रहना चाहता है। फिर चाहे देश की किसी बेटी के साथ गैंगरेप हो…पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठियां भांजे या फिर किसी रेल दुर्घटना में सैंकड़ों यात्री मारे जाएं लेकिन आगे आकर जिम्मेदारी लेकर कुर्सी छोड़ने का साहस किसी में नहीं है।

21 फरवरी को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में एक के बाद एक दो धमाके होते हैं…असमय ही 16 लोग मारे जाते हैं सैंकड़ों लोग घायल हो जाते हैं लेकिन इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। (पढ़ें- सरकार गरजती है आतंकी बरसते हैं..!)

खास बात तो ये है कि देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे धमाके के बाद खुद कहते हैं कि सरकार के पास सूचना थी कि धमाके हो सकते हैं लेकिन इसके बाद भी धमाके हो जाते हैं…लेकिन कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच एक दूसरे के पाले में जिम्मेदारी लेने की गेंद फेंकने का काम शुरु हो जाता है।

नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले राजनीतिक दलों की नैतिकता उस वक्त गायब हो जाती है जब बारी किसी घटना की जिम्मेदारी लेने की आती है। उस वक्त ये नैतिकता भूल अपनी – अपनी कुर्सी बचाने के जुगत में लग जाते हैं।(पढ़ें- आम आदमी जाए भाड़ में..!)। ये कहानी है 121 करोड़ की आबादी वाले देश भारत की जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है।

एक और कहानी है करीब साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय संघ के सबसे गरीब देश बुल्गारिया की…इस कहानी की जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि ये कहानी हैदराबाद धमाके से एक दिन पहले की है और ये कहानी दूसरों को नैतिकता का पाठ पढाने वाले हमारे देश के नेताओं के लिए एक सबक है। हैदराबाद धमाके से एक दिन पहले बुल्गारिया के प्रधानमंत्री बोयके बोरिसोव ने सिर्फ इसलिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि बुल्गारिया की राजधानी सोफिया में वहां की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया था। बोरिसोव का कहना था कि जिस देश में प्रदर्शनकारियों को पुलिस पीटती हो वहां की सरकार का मुखिया मैं नहीं रह सकता। दरअसल वहां के लोग बिजली की बढ़ी हुई बिजली की दरों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे…इस लाठीचार्ज में 14 लोग घायल हो गए थे।(पढ़ें- पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को पीटने पर…)

ये फर्क है सोच का…नैतिकता की बात करने और वक्त आने पर नैतिकता दिखाने का…लेकिन अफसोस इस सब का हमारे देश में नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता…उन्हें फर्क पड़ता है तो कुर्सी जाने पर इसलिए वे कुर्सी बचाने के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते।

deepaktiwari555@gmail.com

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