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एक प्याज की ताकत

प्रयास
प्रयास
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प्याज बड़ी महत्वपूर्ण चीज है। कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्याज के बिना खाना भले ही बन जाए लेकिन प्याज के बिना सरकार नहीं बनती। प्याज सिर्फ सरकार बनाता ही नहीं है बल्कि सरकार गिराने का भी दम रखता है। प्याज के दाम जब जमीन पर होते हैं तब तो सब ठीक रहता है लेकिन अगर प्याज के दामों में ईजाफा होना शुरु हो गया तो फिर ये सबको रूलाता है।
चुनाव के आस पास अगर प्याज के दाम चढ़ने लगे फिर तो ये सबसे ज्यादा सरकार को रूलाता है क्योंकि प्याज का इतिहास सत्तारूढ़ दलों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा है।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख करीब है ऐसे में प्याज की बढ़ती कीमतें शीला सरकार को क्यों न नजर आती..? सो शीला दीक्षित ने केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को चिट्ठी लिखकर प्याज का निर्यात कम करने की अपील कर दी ताकि प्याज के बढ़ते दामों में लगाम कस सके। क्योंकि शीला जानती हैं कि प्याज के दाम इसी तरह चढ़ते रहे तो प्याज के बढ़ते शीला सरकार को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने की वजह बन सकते हैं।
प्याज से ठीक पहले रसोई गैस और डीजल के दाम बढ़े लेकिन शीला दीक्षित ने कभी न तो प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और न ही पेट्रोलियम मंत्री को लेकिन प्याज के बढ़ते दामों ने शीला की नींद हराम कर दी..!
ऐसा नहीं है कि खाद्य पदार्थों में सिर्फ प्याज के दाम ही बढ़े हो…तमाम चीजों पर महंगाई असर डाल रही है और दूसरी सब्जियों के साथ ही राशन सामग्री भी महंगी हुई है लेकिन इस पर शीला ने कभी किसी को चिट्ठी नहीं लिखी…लेकिन प्याज के बढ़ते दामों ने शीला को डरा दिया..! क्योंकि शीला जानती हैं प्याज की ताकत..!
साल 1998 तो याद ही होगा आपको…ये प्याज ही था जिसने एनडीए सरकार की नींद हराम कर दी थी और इसी प्याज के सहारे कांग्रेस ने सत्ता की चाबी हासिल की थी। पाकिस्तान को सब्जियां निर्यात करने वाले कारोबारियों ने प्याज का आयात भी शुरु कर दिया था लेकिन प्याज एनडीए को रुलाकर ही माना।
2010 में भी प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से ही 12 साल बाद फिर से पाकिस्तान से प्याज का आयात शुरु किया गया ताकि प्याज की कीमतों पर लगाम कसी जा सके।
एक बार फिर से प्याज नए कीर्तीमान स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है और आम आदमी के साथ ही सरकार को भी रुला रहा है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बेचैनी तो शरद पवार को लिखे उनके खत से ही जाहिर हो गई है लेकिन शरद पवार के जवाब- प्याज के दाम स्थानीय कारणों से बढ़ रहे हैं ने शीला की उलझन को कम करने की बजाए बढ़ा ही दिया है।
कुल मिलाकर प्याज के आंसू आसानी से थमने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं…आम आदमी तो एक बार को बिना प्याज के गुजारा कर भी ले लेकिन प्याज खरीदने की हैसियत रखने वाले सत्तारूढ़ दल के नेताओं को जनता का ये दुख देखा नहीं जा रहा है क्योंकि उन्हें डर है कि प्याज के आसूं रो रही जनता कहीं चुनाव में इनको न रुला दे।

deepaktiwari555@gmial.com

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