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“जहर” और “भावुकता”- कांग्रेस की रणनीति..!

प्रयास
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कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर बड़ा करम हो गया कि सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाते हुए नंबर दो की पोजिशन पर काबिज कर दिया हालांकि ये अलग बात है कि राहुल इससे पहले भी सोनिया के बाद कांग्रेस में नंबर दो ही थे। बकौल राहुल इससे एक दिन पहले उनके पास पहुंची सोनिया गांधी ने रोते हुए ये बताया कि “पॉवर” जहर के समान है। ये बात सही है कि सोनिया की इस बात का गहरा निहितार्थ है क्योंकि सोनिया ने पराए देश में बहु बनकर आने के बाद अपनी सास और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और अपने पति और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सत्ता में रहते हुए खोया है। ऐसे में राहुल को पार्टी उपाध्यक्ष बनाने के बाद भावुकता में अपने बेटे राहुल को ये बात बताना कि “पॉवर” जहर के समान है कहीं न कहीं सोनिया गांधी के सालों पुराने उस दर्द को ताजा करता है कि जब 31 अक्टूबर 1984 को सोनिया ने अपनी सास इंदिरा गांधी और 21 मई 1991 को अपने पति राजीव गांधी को असमय खोया था। सोनिया ने इस दर्द को करीब से महसूस किया है क्योंकि राजीव गांधी की हत्या के वक्त उनके बच्चों राहुल गांधी की उम्र सिर्फ 21 साल तो प्रियंका गांधी की उम्र 20 साल थी। सोनिया ने कहीं न कहीं राहुल को ये एहसास कराने की कोशिश की कि सत्ता ने उनके परिवार को न सिर्फ तोड़ा है बल्कि एक तरह से तहस नहस कर दिया है। ऐसे में इसके बाद भी राहुल को बड़ी जिम्मेदारी देकर 2014 की जिम्मेदारी सौंपना सोनिया के लिए आसान फैसला नहीं था लेकिन सोनिया ने इसके बाद भी न सिर्फ खुद इस जहर के प्याले को हाथ में उठाया बल्कि अपने बेटे राहुल गांधी को भी इस प्याले को तस्तरी में सजाकर देने की कोशिश की। 2014 के आम चुनाव से पहले चिंतन शिविर में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष घोषित कर कांग्रेस ने अघोषित तौर पर राहुल गांधी को 2014 में कांग्रेस का पीएम उम्मीदवार भी घोषित कर दिया ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या राहुल का अपने भाषण में अपनी मां के रोने का जिक्र करना 2014 तक कांग्रेस के प्रति अपने प्रति एक भावुक माहौल तैयार कर सत्ता हासिल करने की ओर एक कदम है..? कांग्रेस का 2014 से ऐन पहले राहुल को प्रोजेक्ट किया जाना…राहुल का भावुक्ता भरा भाषण और यूपीए की हैट्रिक की चिंता वो भी ऐसे वक्त पर जब यूपीए-2 का कार्यकाल भ्रष्टाचार, घोटलों और विवादों से भरपूर रहा है…जाहिर है ये राह आसान तो बिल्कुल भी नहीं हैं…तो क्या राहुल का भावुकता भरा भाषण किसी रणनीति का तो हिस्सा नहीं था..! खैर राहुल ने कमान संभाल ली है और फैसला देश की जनता को करना है…ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि देश की आवाम 2014 में वोट करने वक्त यूपीए – 2 का कार्यकाल अपने जेहन में रखती है या फिर सोनिया का रोना और राहुल का भावुक भाषण। हम तो बस बड़ी जिम्मेदारी के साथ नई पारी की शुरुआत करने पर राहुल गांधी को बधाई और शुभकामनाएं ही दे सकते हैं।

deepaktiwari555@gmail.com

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