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गैरसैंण- सरकार का पिकनिक स्पॉट..!

प्रयास
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9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य गठन के साथ ही देहरादून को उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी घोषित कर दिया गया। राज्य बने हुए 12 साल का वक्त गुजर गया है लेकिन उत्तराखंड को आज तक स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई। पहाड़ी राज्य की राजधानी पहाड़ में होने के तर्क के साथ कुमाऊं और गढ़वाल के केन्द्र बिंदु गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बने की मांग शुरु से उठती रही है ताकि पहाड़ में राजधानी होने से विकास की दौड़ में पीछे छूट गए पहाड़ का…पहाड़ में रहने वालों का विकास हो लेकिन अफसोस राज्य गठन के 12 साल बाद भी ये सिर्फ एक सपना ही है।
बहुगुणा सरकार ने भले ही गैरसैंण में कैबिनेट की बैठक कर गैरसैंण में विधानभवन बनाने का ऐलान करते हुए गैरसैंण में विधानभवन की नींव भी रख दी हो लेकिन इसके बाद भी प्रदेश की स्थाई राजधानी का सवाल जहां का तहां खड़ा है क्योंकि सरकार ने प्रदेश की स्थाई राजधानी के मसले पर अपना मुहं नहीं खोला है और न ही गैरसैँण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की ही बात कही है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब बहुगुणा सरकार को गैरसैंण को न प्रदेश की स्थाई राजधानी ही बनाना था और न ही ग्रीष्मकालीन राजधानी तो आखिर गैरसैंण में विधानभवन की नींव क्यों रखी गई..? गैरसैंण में जनता के करोड़ों रूपए खर्च क्यों किए जा रहे हैं…?
गैरसैंण में विधानभवन के साथ ही विधायक ट्रांजिट हॉस्टल और अधिकारी कर्मचारी हॉस्टल निर्माण का साफ मतलब ये है कि विधानभवन बनने के बाद गैरसैंण में विधानसभा सत्र तो होगा लेकिन क्या मात्र 2 या 3 दिन का विधानसभा सत्र पहाड़ में कर लेने से पहाड़ का विकास हो पाएगा..? गैरसैंण तक पहुंचने के लिए हवाई मार्ग को तरजीह देने वाले हमारे मुख्यमंत्री और मंत्रीगण क्या हवाई मार्ग से गैरसैंण पहुंचकर पहाड़ के पहाड़ से जीवन का दर्द और पहाड़ के लोगों का मर्म समझ पाएंगे..? विधानभवन बनने के बाद क्या सिर्फ 2 या 3 दिन का सत्र गैरसैंण में करना क्या सच में सरकार की पहाड़ के विकास के प्रति प्रतिबद्धता है या फिर सत्र के बहाने गैरसैंण बनेगा करोड़ों की लागत से सरकार का एक सरकारी पिकनिक स्पॉट..?
ये सवाल उठने इसलिए भी लाजिमी हैं क्योंकि सरकार ने विधानभवन के निर्माण का ऐलान तो किया लेकिन गैरसैंण को स्थाई तो छोड़िए प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के सवाल पर सरकार चुप है। विपक्ष के साथ ही कांग्रेस के ही कई नेता और विधायक के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की पैरवी कर चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री ने मुंह नहीं खोला। 12 साल बाद गैरसैंण में विधानभवन के निर्माण की खबर से प्रदेशवासियों में खुशी की लहर थी लेकिन ये खुशी स्थाई राजधानी और ग्रीष्मकालीन राजधानी के सवाल पर सरकार की चुप्पी से पलभर में ही काफिर हो गई।
स्थाई राजधानी के मसले पर सरकार की चुप्पी साबित करती है कि हमारे नेता चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हो ये नहीं चाहते कि सुगम मैदानी इलाके देहरादून की बजाए किसी दुर्गम पहाड़ी इलाके में प्रदेश की स्थाई राजधानी बने क्योंकि दुर्गम इलाके में राजधानी का मतलब है कि नेता और विधायकों को वहीं रहना होगा जो कि सुगम देहरादून में ऐशो आराम के आदि हो चुके हमारे नेताओं की आदत में नहीं है या कहें कि बस में ही नहीं है। वाकई में पहाड़ी राज्य राजधानी पहाड़ में…चाहे वो गैरसैंण हो या कोई और जगह बनाना अगर हमारे विधायक और नेतागण दिल से चाहते तो शायद राज्य गठन के वक्त स्थाई न सही अस्थाई राजधानी देहरादून की बजाए गैरसैंण में बना दी गई होती तो स्थाई राजधानी के मसले को सुलझाया जा सकता था लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ क्योंकि ये लोग ऐसा कभी चाहते ही नहीं थे। गैरसैंण को 12 वर्ष पूर्व राज्य गठन के वक्त प्रदेश का केन्द बिंदु होने के नाते अस्थाई राजधानी ही बना दिया गया होता तो आज शायद गैरसैंण या कहें कि दुर्गम पहाड़ी इलाकों की तस्वीर कुछ और होती..!
यहां एक सवाल ये भी उठता है कि क्या वाकई में राज्य की राजधानी कहां है इससे प्रदेश के दूसरे इलाकों के विकास की तकदीर तय होती है..? किसी भी प्रदेश की राजधानी कहीं भी हो लेकिन है तो वो पूरे प्रदेश की राजधानी…ऐसे में विकास का हक सिर्फ राजधानी और उसके आसपास के इलाकों को ही क्यों मिले..?
राजधानी से दूर दुर्गम और पिछड़े इलाकों के विकास के लिए सरकार और क्षेत्रीय विधायक अगर प्रतिबद्धता दिखाएं तो क्या उन इलाकों की तस्वीर नहीं बदल सकती..? क्या फर्क पड़ता है राजधानी देहरादून में है…गैरसैंण में है या फिर पिथौरागढ़ या उत्तरकाशी में…विकास की गंगा तो राजधानी से पूरे प्रदेश में बहनी चाहिए बस जरूरत है तो पूरे प्रदेश के विकास की सोच की…चाहे वो धारचूला हो या फिर उत्तरकाशी। जरूरत है अंतिम पंक्ति के हर व्यक्ति की तरक्की की सोच की लेकिन अफसोस हमारे राजनेताओं की सोच यहां पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती है।

deepaktiwari555@gmail.com

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