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जिसने तारा…उसने ही अटकाई सांस

प्रयास
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एफडीआई के हो हल्ले में खोया प्रमोशन में आरक्षण का जिन्न एक बार फिर से बाहर आ गया है…और फिर से बढ़ गयी हैं सरकार की मुश्किलें। सरकार की एफडीआई की डूबती नैया तो सपा और बसपा ने पार लगा दी…लेकिन प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर तो सपा और बसपा ही सरकार की नैया डुबाने की पूरी तैयारी में है। सरकार के लिए राहत की बात ये है कि सपा को छोड़ अधिकतर राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सरकार का न तो विरोध करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं और न ही इस मुद्दे को लेकर जल्दबाजी में है। लेकिन सरकार की मुश्किल ये भी है कि क्योंकि ये संविधान संशोधन विधेयक है ऐसे में सरकार को इसे पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी यानि की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का साथ भी उसे चाहिए होगा…हालांकि भाजपा इसका विरोध नहीं कर रही है लेकिन भाजपा ने प्रमोशन में आरक्षण संविधान संशोधन विधेयक के ड्राफ्ट सामने आने के बाद ही अपने पत्ते खोलने की बात कही है…यानि की भाजपा ने सरकार की सांसे अटका कर जरूर रखी हुई हैं। इसके साथ ही सरकार को अपने सहयोगियों खासकर सपा को तो हर हाल में मनाना ही होगा लेकिन सपा के तेवर फिलहाल ठंडे पड़ते नहीं दिख रहे हैं। सरकार सपा को मनाने में लगी है तो यूपी में अपनी खोई राजनीतिक जमीन को इस मुद्दे के सहारे वापस पाने की कोशिश में लगी बसपा की जल्दबाजी सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है। मायावती ने तो सरकार को तीन दिन का अल्टिमेटम तक दे दिया है…सरकार भी प्रमोशन में आरक्षण पर संविधान संशोधन लाने के मूड में है और शायद ये आश्वासन सरकार ने माया को एफडीआई पर साथ देने के बदले दिया भी था…लेकिन सपा के विरोध सरकार की राह में सबसे बड़ी बाधा है। मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में सपा सांसद नरेश अग्रवाल और बसपा सांसद अवतार सिंह के बीच हाथापाई को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं और ये साबित करने के लिए काफी है कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सपा और बसपा अपने – अपने फायदे के लिए किस हद तक जा सकते हैं। जाहिर है दोनों के अपने अपने राजनितिक हित हैं…और 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर दोनों दल इसको लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा भी हैं लेकिन दोनों की सोच इसको लेकर अलग अलग है। बसपा जहां इसके लागू होने पर इससे लाभांवित होने वाले जाति विशेष के लोगों वोट हासिल करने की कोशिश में है तो सपा इसके लागू होने की दशा में इससे प्रभावित होने वाले सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों के वोटों(जिनकी संख्या उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20 लाख के आस पास है) को साधने की जुगत में है। फिलहाल वॉलमार्ट रिपोर्ट पर संसद नें हंगामा मचा है…जो शांत होने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं…यानि कि एक बार फिर से प्रमोशन में आरक्षण संविधान संशोधन विधेयक का मसला टलता दिखाई दे रहा है…जो मायावती बिल्कुल नहीं चाहती। बहरहाल मनमोहन के लिए एक बार फिर से “एम” फैक्टर मुश्किल का सबब बना हुआ है…और एफडीआई पर सरकार को तारने वाले ये एम फैक्टर कहीं मनमोहन सरकार पर भारी न पड़ जाए।
deepaktiwari555@gmail.com

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