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मौत पर जश्न ! – Jagran Junction Forum

प्रयास
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क्या इंसानियत पर आघात है क्रूर हत्यारे की मृत्यु पर जश्न मनाना ? – Jagran Junction Forum

कसाब को फांसी से ज्यादा ये जानना जरूरी है कि कसाब को फांसी क्यों दी गई? 26 नवंबर 2008 के पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते सवार होकर मुंबई पहुंचे जिन 10 आतंकियों ने हिंदुस्तान को जो जख़्म दिया उसमें से एकमात्र जिंदा बचा आतंकी कसाब ही था। 166 लोगों की मौत के दोषी इस नरसंहार में जीवित पकड़े गए आतंकी ने पकड़े जाने के बाद ये कहने में कोई संकोच नहीं किया कि अगर उसके पास और गोला बारूद होता तो वह और कत्लेआम मचाता और ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान ले लेता। अब अगर ऐसे क्रूर हत्यारे की मौत पर अगर इस हमले से पीड़ित और इस हमले में अपनो को खो चुके लोग जश्न मना रहे हैं तो ये इंसानियत पर आघात कैसे हो गया। बड़ा सवाल ये है कि क्या ऐसा व्यक्ति मनुष्य कहलाने के योग्य है…? अगर ये मनुष्य होता तो ऐसा अमानवीय काम कभी नहीं करता और सिर्फ अपने आकाओं के एक ऐसे मकसद के लिए कत्लेआम न मचाता…जिस मकसद का रास्ता निर्दोष इंसानों की लाशों से होकर गुजरता है। और ये बात कहां तक जायज है कि निर्दोष लोगों को मारकर मानवता के ये क्रूर दुश्मन तो जमकर जश्न मनाते हैं…लेकिन जब इनकी मौत पर जश्न होता है तो इसे इंसानियत पर आघात कैसे कहा जा सकता है !!! ऐसा तो नहीं था कि कसाब को गिरफ्त में लेने के बाद सीधे मौत की सजा सुना दी गई। कसाब को तो हिंदुस्तान के कानून के मुताबिक अपने बचाव का पूरा मौका दिया गया…इसके बाद दोषी पाए जाने पर ही उसे फांसी पर लटकाया गया। ऐसे दुर्दांत अपराधी की मौत पर गम करना उन पीडितों के साथ निश्चित तौर पर अन्याय कहलाएगा…जिन्होंने इस आतंकी हमले में अपनों को खोया है…किसी ने अपने माता- पिता को खोया तो किसी ने अपने भाई- बहिन को…जिसकी कमी शायद ही कभी पूरी हो पाएगी…असमय ही किसी अपने को खोने का गम क्या होता है ये तो वही बता सकता है जिस पर बीतती है। जहां तक इंसानियत के नाम पर व्यक्तिगत भावनाओं को दरकिनार करने की बात है…तो पहली चीज तो ये है कि इंसानियत से बड़ा धर्म कोई नहीं है….जो व्यक्ति दूसरों के सुख दुख को न समझे…और बेवजह एक ऐसे मकसद के लिए कत्लेआम कर जो अमानवीय हो और निर्दोष लोगों की लाशों से होकर गुजरता है तो ऐसे व्यक्ति की भावनाएं व्यक्तिगत नहीं होती बल्कि ये भावनाएं एक अविकसित दिमाग से होकर उपजती हैं…और ये भावनाएं जब किसी के आंगन का सुख चैन छीनने में आमादा हो तो इंसानियत के नाम पर इन्हें दरकिनार करना ही समस्या का समाधान है। लेकिन अगर ये व्यक्तिगत भावनाएं मुंबई हमले जैसे किसी पीड़ित परिवार के सदस्य या राष्ट्र की हैं…जो कसाब जैसे गुनहगारों की फांसी की वकालत करते हैं तो और उसकी फांसी पर जश्न मनाते हैं तो इसे इंसिनायत पर न तो आघात कहा जएगा औऱ न ही इंसानियत के खिलाफ क्योंकि कसाब जैसे लोगों को इंसान कहलाने का कोई हक नहीं है…और जिसे इंसान कहलाने का कोई हक नहीं है उसकी व्यक्तिगत भावनाएं को दरकिनार करना ही समझदारी है क्योंकि ये भावनाएं किसी का अहित ही करेंगी।

deepaktiwari555@gmail.com

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