Menu
blogid : 11729 postid : 110

मुद्दा नियम नहीं…मुद्दा है कि बहस हो

प्रयास
प्रयास
  • 427 Posts
  • 594 Comments

संसद के शीतकालीन सत्र में एफडीआई पर विपक्ष के हंगामे की बर्फ पिघलने का नाम नहीं ले रही है। एफडीआई पर नियम 184 के तहत चर्चा और वोटिंग कराने की मांग पर अड़ी मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा अपने स्टैंड से पीछे हटने को तैयार नहीं है…ऐसे में सवाल ये उठने लगा है कि क्या शीतकालीन सत्र का हाल भी मानसून सत्र की तरह ही होगा या फिर एफडीआई पर बना गतिरोध दूर होगा। खैर गतिरोध को दूर करने की कवायद जारी है…देखते हैं ये कवायद क्या रंग लाती है। जिस एफडीआई को लेकर हो हल्ला मचा है उसकी ही बात करें तो सरकार इसे आर्थिक सुधारों के तहत लिया गया फैसला बता रही रही तो इसका विरोध कर रहे समूचे विपक्ष के साथ ही सरकार के कुछ सहयोगियों को एफडीआई पर सरकार का ये फैसला रास नहीं आ रहा है। किसी भी चीज के दो पक्ष होते हैं…एक सकारात्मक पक्ष और दूसरा नकारात्मक पक्ष…बस जरूरत इस बात की है कि आप उसे किस नजर से देख रहे हैं। ठीक इसी तरह हर चीज की तरह एफडीआई के भी दो पक्ष हैं…एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। सरकार को एफडीआई का सकारात्मक पक्ष दिखाई दे रहा है…जो बताता है कि एफडीआई देश के आर्थिक सुधारों की दिशा में एक बड़ा फैसला है…साथ ही एफडीआई से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे…बिचौलियों की भूमिका खत्म होने से सीधे किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिलेगा…उत्पादों के भंडारण में मदद मिलने से उत्पाद जल्द खराब नहीं होंगे। विदेशी कंपनियों को कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेना होगा…इससे देश में नई तकनीक आएगी…और लोगों की आय बढ़ेगी। उत्पाद सस्ते होने से उपभोक्ताओं को इसका सीधा फायद मिलेगा। वहीं विपक्ष को एफडीआई का नकारात्मक पक्ष दिखाई दे रहा है जो बताता है कि…एफडीआई के आने से छोटे और मझले व्यापारी खत्म हो जाएंगे…विदेशी कंपनियां सस्ते दामों पर सामान बेचेंगे, जिससे छोटे और मझले व्यापारी इनसे मुकाबला नहीं कर पाएंगे और उनके लिए रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा…इसके साथ विदेशी कंपनियां अपने बाजार से सामान खरीदेंगी…ऐसे में घरेलू बाजार से नौकरियां छिनने का खतरा पैदा हो जाएगा…विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार करने की बजाए मौजूदा बाजार पर काबिज हो जाएंगी, जिससे खुदरा बाजार से जुड़े 4 करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा। ऐसे और तमाम कारक हैं जिसकी वजह से एफडीआई को लेकर बहस छिड़ी है कि ये हिंदुस्तान के लिए फायदेमंद है या नुकसानदायक। बड़ा सवाल ये है कि अगर हर चीज के नकारात्मक पक्ष को देखा जाए तो फिर तो कोई नई चीज भले ही उसके अच्छे फायदे भी हों वो आकार ले ही नहीं सकती…फिर एफडीआई क्या चीज है। दुर्भाग्य ये है कि एफडीआई के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को जानने की बजाए…उस पर बहस होने की बजाए…हमारी सरकार और विपक्ष इस बात को लेकर लड़ रहे हैं कि बहस किस नियम के तहत हो…इन सबको शायद बहस से ज्यादा चिंता अपने राजनीतिक फायदे की है। विपक्ष 184 के तहत वोटिंग वाले प्रावधान पर बहस पर ये सोचकर अड़ा है कि शायद ये तीर निशाने पर लग जाए और सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जाए…जबकि सरकार 193 पर बहस के लिए तैयार दिखाई देती है क्योंकि उसमें वोटिंग का प्रावधान नहीं है…यानि सरकार सिर्फ बहस कराकर ही बचना चाह रही है और वोटिंग का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। अगर संसद में एफडीआई पर बहस होती है तो एफडीआई के कई ऐसे पहलू निकल कर सामने आ सकते हैं कि जिससे शायद देश की जनता अब तक अंजान हो…यानि कि बहस होना पहली शर्त है न कि ये कि बहस किस नियम के तहत हो।
deepaktiwari555@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply