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आगाज़ शानदार…अंज़ाम क्या होगा ?

प्रयास
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अन्ना के साथ 15 अगस्त 2011 में अरविंद केजरीवाल का भ्रष्टाचार के खिलाफ और लोकपाल के समर्थन में आगाज़ शानदार था…और इसे देशभर में अपार जनसमर्थन भी मिला। 2 अक्टूबर 2012 को अन्ना से राहें अलग हो जाने के बाद भी केजरीवाल ने किसी न किसी बहाने राजनीतिक दलों पर निशाना साधकर खुद को खबरों में जिंदा रखा हुआ है। अब जबकि केजरीवाल ने “आम आदमी पार्टी” के गठन के साथ राजनीतिक दलों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नई लड़ाई का आगाज़ राजनीति में ही उतरकर कर दिया है तो ये सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या राजनीति के मैदान में सालों से जमे और पारंगत राजनीतिक दलों के नेताओं से “आम आदमी पार्टी” कैसे और कितना मुकाबला कर पाएगी। इसमें पहला और बड़ा सवाल ये उठता है कि “आम आदमी पार्टी” के लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई में खुद का दामन पाक साफ रखते हुए कितने आगे तक चल पाएंगे…? साथ ही क्या जिस सुराज को लाने की वे बात कर रहे हैं उस मकसद में कामयाब हो पाएंगे…? देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए तो अरविंद की “आम आदमी पार्टी” के जरिए ये राह आसान तो बिल्कुल नहीं दिखाई देती। अरविंद के सामने कई चुनौतियां हैं जिसमें सबसे पहली और बड़ी चुनौती लोगों के सामने विकल्प के तौर पर मैदान में उतारने के लिए उन्हें स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों को तलाशने की है। अगर अरविंद ये काम कर भी लेते हैं तो दूसरी बड़ी चुनौती अरविंद के साथ ही इन उम्मीदवारों के लिए चुनाव में सालों से राजनीति में सक्रिय राजनीतिक दलों के बाहुबली और पैसे वाले नेताओं से सामना करने का होगा। जनता के भरोसे से अगर आम आदमी पार्टी के लोग चुनाव जीत भी जाते हैं तो भी इनकी संख्या बहुत ज्यादा होने की उम्मीद बहुत कम है…यानि कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी का किंग बनने का रास्ता बेहद कठिन है और अगर ये लोग किंग मेकर बनने की स्थिति में आ जाते हैं तो भी ये किसी किंग (राजनीतिक दल) को चाहकर भी समर्थन नहीं दे पाएंगे…क्योंकि ऐसा करने पर कहीं न कहीं ये उन राजनीतिक दलों की जमात में शामिल हो जाएंगे जो इससे पहले इस वादे के साथ जनता के बीच उतरे थे कि वे भ्रष्टाचार के विरोधी हैं…लेकिन बाद में किंग मेकर बनने की स्थिति में आने पर ये लोग अपना स्वार्थ साधते नजर आए थे…और भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगाने से भी नहीं चूके थे। बहरहाल राजनीति के पुराने मैदान में पुराने और पारंगत राजनीतिक दिग्गजों के साथ इस नई लड़ाई में अरविंद और उनके योद्धा जनता का भरोसा जीतकर मैदान मारने में कितना कामयाब हो पाते हैं इसका फैसला तो देश की जनता ही करेगी…लेकिन मैदान में उतरने से पहले औऱ उसके बाद जिस तरह अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक दिग्गजों के साथ ही उनको पीछे से समर्थन देने वाले कारपोरेट दिग्गजों की नींद हराम की उससे तो यही लगता है कि बाजी कोई भी मारे लेकिन ये लड़ाई न सिर्फ रोचक होगी बल्कि आने वाले 10 सालों में देश की राजनीति की नई दिशा भी जरूर तय करेगी…उम्मीद करते हैं कि एक नेक मकसद के लिए शुरु हुई ये लड़ाई बिना भटकाव, बिना लालच और बिना स्वार्थ के आगे बढ़े और एक नया इतिहास रचे।

deepaktiwari555@gmail.com

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