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क्या वाकई में चेहरा बदलने से चरित्र बदल जाता है…जाहिर है इस पर आपका जवाब भी नहीं ही होगा…लेकिन हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साहब की राय शायद इससे जुदा है। भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरी मनमोहन सरकार की सर्जरी की बात जब उठने लगी थी तो लगा था कि शायद अब दागदार चेहरे मनमोहन की टीम का हिस्सा नहीं रहेंगे…मनमोहन उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस न जुटा पाए तो क्या कम से कम सरकार से तो उनकी छुट्टी तो कर ही देंगे…लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ…मनमोहन सिंह अपने सभी दागी साथियों को बचा ले गए और तो और सबसे विवादित और हाल ही में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को तो बकायदा प्रमोशन दे दिया गया…और बना दिया विदेश मंत्री। सलमान खुर्शीद पर बात सिर्फ भ्रष्टाचार के आरोपों की होती तो शायद समझ आता…क्योंकि ये आरोप तो सरकार के मुखिया के साथ ही सरकार में शामिल एक दर्जन से ज्यादा मत्रियों पर थे…लेकिन खुर्शीद साहब तो खुलेआम गुंडई का नमूना केजरीवाल को धमका कर दिखा चुके थे…वो भी कानून मंत्री जैसे पद पर रहते हुए…इसके बाद भी खुर्शीद की पीठ थपथपा कर प्रमोशन कर दिया गया। इसी को शायद सियासी मजबूरी कहते हैं…2014 के आम चुनाव में अल्पसंख्यक वोट जो हासिल करने हैं…तो भई कैसे खुर्शीद की छुट्टी करने का साहस सोनिया गांधी कैसे दिखा पाती…उन्हें तो अपने अल्पसंख्यक वोटों का आधार बढ़ाना है…इसलिए तो पहली बार किसी अल्पसंख्यक नेता को विदेश मंत्री की कुर्सी पर सुशोभित भी कर दिया वो भी प्रमोशन के साथ। हां, कोयला घोटाले में घिरे सुबोधकांत सहाय ही एक ऐसा नाम नजर आता है जिनकी विदाई से एक दागदार चेहरा जरूर सरकार से कम हो गया है…जबकि दूसरा नाम एसएम कृष्णा का है। सोनिया गांधी ने 2014 के आम चुनाव से पहले भ्रष्टाचार के और घोटालों के गंभीर आरोपों से घिरी यूपीए सरकार का चेहरा बदलने की कोशिश तो की…लेकिन ये सिर्फ कोशिश ही साबित होकर रह गई…और सर्जरी के बाद भले ही डेढ़ दर्जन से ज्यादा नए चेहरे दिखाई जरूर दे रहे हैं…लेकिन सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले और मजबूत मंत्रालयों को संभालने वाले ज्यादातर चेहरे दागदार ही हैं।
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