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ठीक कहा प्रधानमंत्री जी…पैसे पेड़ पर नहीं लगते

प्रयास
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सरकार से ममता की विदाई के बीच सरकार के फैसलों पर सफाई देने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दूरदर्शन में रात आठ बजे प्रकट हुए…तो लोगों को बड़ी उम्मीद थी कि शायद मौनी बाबा की उपाधि पा चुके मनमोहन सिंह का मौन टूटेगा तो शायद वे जनता की हक की बात करेंगे…हिंदी से परहेज करने वाले हमारे प्रधानमंत्री ने हिंदी में बोलना शुरू किया तो ये उम्मीदें और ज्यादा बढ़ गयीं…लेकिन प्रधानमंत्री का संबोधन एक प्रधानमंत्री का संबोधन न होकर कांग्रेस का घोषणापत्र सरीखा समझ में आया। प्रधानमंत्री सिर्फ वही बोले…जो लगातार पिछले कुछ दिनों सरकार के मंत्री महंगाई और एफडीआई पर सरकार के फैसले के बचाव में बोल रहे थे। प्रधानमंत्री के संबोधन में इतना नया जरूर था कि प्रधानमंत्री ने लोगों का सामान्य ज्ञान ये कहकर बढ़ा दिया कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते…अरे मनमोहन सिंह साहब आपने तो जनता के मुंह की बात छीन ली…बढ़ती महंगाई से परेशान जनता यही तो आपको बताने की कोशिश कर रही है कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते…इसलिए महंगाई पर काबू करो। पैसे पेड़ पर लगते तो आपको महंगाई बढ़ाने से कौन रोक रहा था…फिर तो आप बस बढ़ाए जाओ…लेकिन साहब ये पैसे एक आम आदमी…एक गरीब आदमी बड़ी मेहनत से कमाता है…मामूली सी कमाई में उसे सारे खर्च वहन करने होते हैं…देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा सिर्फ इतना ही पैसा रोज कमा पाता है कि किसी तरह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सके…ऐसे में आप इस चीज का जवाब दे दीजिए…कि आपके इन फैसलों से देश की इस बड़ी आबादी को क्या लाभ होगा। क्या इन्हें नौकरी मिल पाएगी…? क्या ये लोग बड़े बड़े स्टोर से सामान खरीदने की हिम्मत जुटा पाएंगे…? क्या वाकई में इनतो किफायती दरों में वस्तुएं उपलब्ध हो पाएंगे। इस बारे में भी जरूर सोचिएगा…जब आप देश हित में फैसले लेते हैं तो इन फैसलों से ऐसे लोगों को कितना फायदा होगा…ये शायद आप नहीं सोचते…एक अर्थशास्त्री भी होने के नाते आपके तर्क…आपके फैसले बिल्कुल सही हो सकते हैं…लेकिन क्या वास्तव में ये फैसले आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति का विकास कर पाएगी…ये जरूर सोचिएगा। माना आपके फैसलों से देश का आर्थिक विकास होगा…लेकिन क्या ये विकास रोजी रोटी के जुगाड़ में दिन गुजार देने वाले लोगों को विकास कर पाएगा। एफडीआई की बात करें तो निश्चित तौर पर वाहन, बीमा और टेलीकॉम के क्षेत्र में एफडीआई के अच्छे नतीजे रहे हैं…लेकिन यहां बड़ा सवाल ये भी खड़ा होता है कि आखिर ये फैसले लेने के लिए आपने यही वक्त क्यों चुना जब सरकार पहले से ही एक लाख 86 हजार करोड़ रूपए के कोयला घोटाले के आरोपों से घिरी थी। क्या ये सिर्फ कोयला घोटाले पर मचे बवाल को शांत करने की रणनीति थी। खैर इन आरोपों पर आपके पास देश के खराब आर्थिक हालात जैसे कई तर्क मौजूद हैं…जो आपने दिए भी हैं…लेकिन दूरदर्शन पर जनता को दूर से दर्शन देकर आपने जो सफाई दी है…वो तो कम से कम गले नहीं उतर रही है…उम्मीद करते हैं आपका ये मौन सिर्फ सरकार के फैसलों के बचाव में ही न टूटे बल्कि उनके सामने भी टूटे जिनके बैठने के लिए आप प्रधानमंत्री होने के बावजूद अपनी कुर्सी छोड़ देते हैं…जिनकी हामी के बिना आप कोई फैसला नहीं ले पाते…हमने तो कुछ ऐसा ही सुना है…अब यहां किसका जिक्र हो रहा है…ये भी अगर लिखना पड़े तो फिर तो पढ़ने वालों के सामान्य ज्ञान पर शक करने जैसा होगा।

deepaktiwari555@gmail.com

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