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वैसे तो हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साल में दो ही बार हिंदी में बोलते हैं (अंग्रेजी में भी कभी कभी बोलते हैं) 15 अगस्त और 26 जनवरी को…अभी 15 अगस्त बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं…लेकिन सोमवार को संसद भवन के बाहर अचानक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोयला घोटाले पर बोलते हुए देखा वो भी हिंदी का शेर बोलते हुए देखा तो यकीन नहीं हुआ कि 26 जनवरी से पहले इतनी जल्दी मनमोहन सिंह के श्रीमुख से हिंदी में बोल निकलेंगे। खैर प्रधानमंत्री बोले तो सही…लेकिन प्रधानमंत्री शायद ये नहीं समझ पाए कि उनके ये बोल उनकी ही पोल खोल गए। दरअसल कोयला घोटाले पर अभी तक चुप्पी साधे बैठे मनमोहन सिंह ने कुछ इस अंदाज में बयां किए अपने जज्बात…प्रधानमंत्री ने कोयला घोटाले पर कहा कि…’हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी’। मौनी बाबा (हाल ही में बाबा रामदेव का दिया मनमोहन सिंह को नाम) के नाम से भी मशहूर हो चुके हमारे प्रधानमंत्री साहब ने खुद इस शेर को बोलकर ये साबित कर दिया कि उन्हें मौनी बाबा क्यों कहा जाता है। इस शेर के साथ ही अपने दिए बयान से भाजपा पर भी कोयला घोटाले के लिए सवाल खडे करने पीएम ने खुद पर ही कई सवाल खडे कर दिए। 1 लाख 86 हजार करोड़ जैसे बड़े कोयले घोटाले पर प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी का हवाला देकर ये साबित कर दिया कि वो इस मुद्दे को लेकर कितने गंभीर हैं। रही सही कसर पूरी कर दी प्रधानमंत्री के उस बयान ने जिस पर उन्होंने कैग रिपोर्ट को तथ्यविहीन बताकर कैग के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया। मैंने कहीं पढ़ा था कि संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि कैग इस देश का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा…क्योंकि वह यह तय करेगा कि जनता का पैसा उसी तरह से खर्च हो रहा है कि नहीं जैसा जनादेश संसद को मिला है…यानि कि सरकार जनता के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं कर रही है…ऐसे में हमारे देश के प्रधानमंत्री कैग पर सवाल खड़ा करते हैं तो देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। चार दिनों तक संसद में हंगामा होने के बाद सामवोर को जब प्रधानमंत्री के संसद में बयान देने की खबर आयी तो सभी को लगा था कि शायद मनमोहन सिंह कोयला घोटाले पर बनी भ्रम की स्थिति को दूर करने के साथ ही अपने ऊपर लगे आरोपों का करारा जवाब देंगे…लेकिन प्रधानमंत्री अपनी छवि से बाहर नहीं निकल पाए और वही बयान देकर वापस लौट गए जो कैग रिपोर्ट आने के बाद से ही सरकार के कारिंदे मीडिया के सामने दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने एक शेर सुनाकर अपनी मजबूरी भी जनता के सामने पेश कर दी कि विपक्ष कितना ही हल्ला मचा ले…वे नहीं बोलने वाले….ऐसा लगता हो जैसे बोलने की मनाही है हमारे प्रधानमंत्री को अब कौन मना करता होगा…ये यहां लिखने की जरूरत मैं नहीं समझता। खैर ये तो रही हमारे मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री (कोयला घोटाले के बाद तो यही लगता है) की…कोयला घोटाले पर हल्ला मचाने वाली भाजपा भी इस मुद्दे पर दूध की धुली नहीं प्रतीत होती है। भाजपा शासित राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों पर भी प्रधानमंत्री को खत लिखकर कोल ब्लॉक की नीलामी न करने का अनुरोध करने के आरोप लग रहे हैं…सोमवार को भोपाल में तो बकायदा कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मुख्यमंत्री के इस्तीफे तक की मांग कर डाली…यानि जो तीर भाजपा ने केन्द्र सरकार पर चलाया है…इसके जवाब में भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों को भी ऐसे ही तीर का सामना करना पड रहा है। रविवार को टीम केजरीवाल ने भी भाजपा पर कोयला घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर उसे भी कांग्रेस की पंक्ति में खड़ा करने का प्रयास किया था। प्रधानमंत्री तो अपने बयान और विशेष हिंदी के शेर से सरकार की सफाई तो पेश नही कर पाए उल्टा अपने ऊपर ही सवाल खड़े कर अपनी ही पोल खोलकर चल दिए हैं…लेकिन अब सवाल ये है कि कोयले के मुद्दे पर सरकार को घेरने के साथ ही इस मुद्दे को लेकर संसद ठप करने वाली भाजपा अपने पर लगे इन आरोपों से खुद को पाक साफ कैसे साबित करती है।
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