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‘रामलीला’ में महाभारत

प्रयास
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भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के अधूरे आंदोलन और चुनावी विकल्प देने के टीम अन्ना के फैसले का जनता ने स्वागत भी किया तो इसका विरोध भी हुआ…ऐसे में लोगों की निगाहें रामदेव के आंदोलन की तरफ भी थी। 9 अगस्त की सुबह से ही रामलीला मैदान में समर्थकों का रैला लगा हुआ था…और हर कोई रामदेव के पहुंचने के इंतजार में था। सबको उममीद थी कि रामदेव आएंगे तो आंदोलन की दिशा और इस लड़ाई की रणनीति पर से पर्दा उठाएंगे…तय कार्यक्रम के तहत रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान से आंदोलन का शंखनाद भी किया…लेकिन सरकार के प्रति रामदेव के ढीले तेवर और तीन दिन के सांकेतिक अनशन के एलान ने रामदेव के उन दावों की हवा निकाल दी…जो वे आंदोलन से पहले तक या यूं कहे जून 2011 में रामलीला मैदान में दिल्ली पुलिस की रावणलीला के बाद से ही वे करते आए थे…कि अबकी लड़ाई आर पार की लड़ाई होगी। रामदेव का ईरादा आर पार की लड़ाई का रहा भी हो तो शायद अन्ना के आंदोलन के हश्र से रामदेव ने सबक जरूर लिया होगा। रामदेव को इस बात को अंदेशा हो गया होगा कि अन्ना के आंदोलन की तरह केन्द्र सरकार ने उनके आंदोलन को भी नजरअंदाज कर दिया तो आर पार की लड़ाई का ऐलान कहीं उनके ही गले की हड्डी न बन जाए…जो न तो उगलते बने और न ही निगलते। अब रामदेव तीन दिन के अनशन की बात कर रहे हैं…औऱ सरकार को भी उन्होंने अपनी मांगों पर विचार के लिए इतने ही दिन का समय दिया है…लेकिन जो सरकार जंतर मंतर पर टीम अन्ना के 10 दिन के आंदोलन से नहीं डिगी…उनके लिए रामलीला मैदान में तीन दिन का आंदोलन क्या चीज है…इसका अंदाजा आंदोलन की शुरूआत के साथ ही उस वक्त हो गया था…जब आंदोलन शुरू होने के कुछ ही देर बाद केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का बयान आता है कि रामलीला तो हर साल होती है…बस किरदार बदल जाते हैं…खुर्शीद का ये बयान तीखे कटाक्ष के साथ ही सीधा ईशारा था रामदेव के लिए कि आप कितना भी हो हल्ला मचा लो…सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हालांकि हरिद्वार से सांसद और केन्द्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री हरीश रावत ने ये जरूर कहा कि बातचीत के रास्ते खुले हैं…लेकिन यहां रामदेव दो कदम आगे निकल गए और हरीश रावत से कह दिया कि सोनिया गांधी से कह दो कि बातचीत के द्वार तो हमारे भी खुले हैं…हम तो आए ही हरिद्वार से हैं। बातचीत के लिए रामदेव भी तैयार हैं और सरकार भी…लेकिन यहां पर बड़ा सवाल ये है कि आखिर पहल कौन करे…बहरहाल रामदेव ने तीन दिन का वक्त सरकार को देने के साथ ही अपने आंदोलन के लिए यह कहकर आगे का रास्ता खुला रखा कि आंदोलन की आगे की रणनीति का खुलासा वे 12 अगस्त को करेंगे…यानि की अगर सरकार इन तीन दिनों में उनकी मुख्य मांग…कालाधन वापस लाने, मजबूत लोकपाल लाने और सीबाआई की स्वायत्तता पर संजीदगी से विचार नहीं करती तो आंदोलन का बिगुल वे बजाते रहेंगे। हालात तो इसी ओऱ ईशारा कर रहे हैं कि रामदेव के आंदोलन में भले ही लोगों का भारी जनसमूह उमड़ रहा हो लेकिन सरकार किसी भी हालत में किसी भी तरह की बातचीत के मूड में नहीं दिख रही…ऐसे में रामलीला मैदान के बाद रामदेव के आंदोलन का अगला पड़ाव क्या होगा और किस रूप में होगा ये देखना रोचक होगा।

दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

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